गरियाबंद, 21 अगस्त। Divyaang Child : सरकारें चाहे लाख दावा करें कि वे दिव्यांगजनों के लिए योजनाएं चला रही हैं, लेकिन हकीकत गांवों के आखिरी छोर में बसे जरूरतमंदों की जमीनी हालात देखकर खुद ही कटघरे में खड़ी हो जाती है।
ऐसा ही एक मार्मिक उदाहरण है, फिंगेश्वर ब्लॉक के ग्राम रवेली का 13 वर्षीय दिव्यांग बालक मनोज उर्फ पप्पू विश्वकर्मा, जो 90% दिव्यांगता के साथ अपना जीवन घिसट-घिसट कर जी रहा है।
नसीब में नहीं सरकारी मदद
पप्पू न तो चल सकता है, न बोल सकता है, और न ही अपने दैनिक कामों (Divyaang Child) को खुद कर पाता है। वह मूक है, दोनों हाथ-पैर काम नहीं करते, फिर भी उसके माता-पिता को आज तक सरकार की किसी योजना का लाभ नहीं मिला।
पिता राजकुमार विश्वकर्मा, जो एक दिहाड़ी मजदूर हैं, ने बताया कि उन्होंने कलेक्टर कार्यालय से लेकर जनपद तक दर्जनों बार चक्कर काटे, लेकिन बेटे को न तो दिव्यांग पेंशन, न सहायता उपकरण, और न ही कोई ई-रिक्शा या व्हीलचेयर मिल सकी।
बीमारी से कोमा में गया बच्चा, कर्ज लेकर इलाज कराया
राजकुमार बताते हैं कि कुछ महीने पहले बेटे की तबीयत अचानक बिगड़ गई। रातों-रात उसे रायपुर के मेकाहारा अस्पताल ले जाया गया, जहां डॉक्टरों ने बताया कि बच्चा पीलिया जैसी गंभीर बीमारी से ग्रसित होकर कोमा में चला गया। पिता की भर्राई आवाज में अपनी पीड़ा बताई- बेटे की जान बचाने के लिए हमें 1 लाख रुपये से ज्यादा कर्ज लेना पड़ा, आज तक हम उसी कर्ज में डूबे हुए हैं।
150 मीटर दूर स्कूल तक घिसटकर जाता है बच्चा
सबसे मार्मिक दृश्य तब सामने आता है जब ये मासूम बच्चा घर से 150 मीटर दूर स्कूल तक जमीन पर घिसटते हुए पहुंचता है। वह कक्षा 7वीं में पढ़ रहा है और भविष्य की एक छोटी सी उम्मीद संजोए है। पिता राज कुमार ने कहा, जब मैं उसे खुद घसीटते हुए स्कूल जाते देखता हूं तो मेरा दिल टूट जाता है।
राजकुमार ने प्रशासन से हाथ जोड़ कर अपील (Divyang Child) की है, साहब! बच्चे को सरकारी मदद दिला दो… कुछ कर दो… मेरी हैसियत नहीं कि हर दिन घिसट-घिसट कर बेटे का भविष्य बना सकूं।
