National President : BJP अध्यक्ष पद पर रस्साकशी…! संघ और आलाकमान के बीच सहमति की तलाश…बड़े राज्यों की सोशल इंजीनियरिंग बनी चुनौती

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नई दिल्ली, 29 जून। National President : भारतीय जनता पार्टी में नए राष्ट्रीय अध्यक्ष के चयन को लेकर आलाकमान और संघ के बीच चल रही खींचतान अब निर्णायक मोड़ पर पहुंचती दिख रही है। मौजूदा अध्यक्ष जेपी नड्डा का कार्यकाल जनवरी 2023 में समाप्त हो चुका है, जिसे लोकसभा चुनाव 2024 के मद्देनज़र जून तक बढ़ाया गया था। लेकिन अब जबकि चुनावी प्रक्रिया पूरी हो चुकी है और संगठनात्मक चुनाव अंतिम चरण में हैं, पार्टी नेतृत्व पर नए अध्यक्ष की घोषणा को लेकर दबाव बढ़ गया है।

संघ बनाम सत्ता केंद्र : विचारधारात्मक बनाम राजनीतिक प्राथमिकता

संघ पहले ही साफ कर चुका है कि वह राजनीतिक संदेश देने के बजाय संगठन को मजबूत करने वाले अध्यक्ष की पैरवी करता है। संघ नेतृत्व चाहता है कि नया अध्यक्ष ऐसा नेता हो जो जमीनी स्तर पर पार्टी की पकड़ को और मजबूत कर सके। वहीं, पार्टी का सत्ता केंद्र — खासतौर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह — नेतृत्व परिवर्तन को राजनीतिक संतुलन और 2029 की रणनीति के लिहाज़ से देख रहा है।

सिर्फ 14 राज्यों में प्रक्रिया पूरी

बीजेपी के संविधान के मुताबिक राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव से पहले कम-से-कम 19 राज्यों में संगठनात्मक चुनाव जरूरी हैं। अब तक 14 राज्यों में यह प्रक्रिया पूरी हो चुकी है, लेकिन उत्तर प्रदेश, गुजरात, कर्नाटक, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र और पश्चिम बंगाल जैसे रणनीतिक राज्यों में संगठन चुनाव रुके हुए हैं, जिससे राष्ट्रीय अध्यक्ष की नियुक्ति में देरी हो रही है।

शुक्रवार को पार्टी ने चुनाव प्रक्रिया को तेज़ी देने के लिए राज्यों में चुनाव अधिकारियों की नियुक्ति कर दी है:

  • महाराष्ट्र: किरण रिजिजू
  • उत्तराखंड: हर्ष मल्होत्रा
  • पश्चिम बंगाल: रविशंकर प्रसाद

महासचिवों में बदलाव तय

सूत्रों के मुताबिक, नए अध्यक्ष के बनने के बाद कम-से-कम 50% राष्ट्रीय महासचिवों की छुट्टी तय मानी जा रही है। इसके स्थान पर युवा और जमीनी स्तर पर सक्रिय नेताओं को संगठन की जिम्मेदारी सौंपी जाएगी, जो अगले पांच वर्षों की तैयारी में अहम भूमिका निभाएंगे।

राज्यों में अध्यक्ष चयन : सोशल इंजीनियरिंग की परीक्षा

उत्तर प्रदेश: जातीय संतुलन की बिसात

यूपी में प्रदेश अध्यक्ष को लेकर सबसे ज़्यादा माथापच्ची हो रही है। दलित, ओबीसी और ब्राह्मण संतुलन को साधना भाजपा के लिए ज़रूरी हो गया है। संभावित नामों में शामिल हैं:

  • धर्मपाल सिंह (लोध/OBC)
  • बीएल वर्मा (केंद्रीय मंत्री, लोध/OBC)
  • रामशंकर कठेरिया (दलित, पूर्व केंद्रीय मंत्री)
  • स्वतंत्र देव सिंह (पूर्व अध्यक्ष, कुर्मी/OBC)
  • दिनेश शर्मा (ब्राह्मण, पूर्व उपमुख्यमंत्री)

चर्चा है कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह से संभावित नामों पर विचार-विमर्श हो चुका है, लेकिन अंतिम निर्णय मोदी-शाह की जोड़ी पर निर्भर करेगा।

कर्नाटक : लिंगायत दबदबा बनाम संगठनात्मक स्थिरता

बीएस येदियुरप्पा अपने पुत्र बीवाई विजयेंद्र को फिर से प्रदेश अध्यक्ष बनाए रखना चाहते हैं, लेकिन पार्टी का एक बड़ा वर्ग इसे लेकर असहमत है। विकल्पों में-

  • सी.टी. रवि (वोक्कालिगा, पूर्व महासचिव)
  • सुनील कुमार (ओबीसी नेता)

कर्नाटक में पार्टी के सामने सवाल है: क्या पार्टी फिर से लिंगायत चेहरे को तरजीह देगी या संगठनात्मक अनुशासन को प्राथमिकता?

महाराष्ट्र : मराठा दांव

रविंद्र चव्हाण (मराठा नेता) को पहले ही कार्यकारी अध्यक्ष बनाया जा चुका है, और सूत्रों के अनुसार वे स्थायी अध्यक्ष बन सकते हैं। उनकी नजदीकियां मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस से हैं, जो उनके लिए समर्थन जुटा सकते हैं।

पश्चिम बंगाल : संकट गहराया

यहां संगठनात्मक चुनौतियां गहरी हैं। पार्टी अभी भी 2021 की हार से पूरी तरह उबर नहीं पाई है। यहां अध्यक्ष पद के लिए कड़ा मंथन जारी है और एक ऐसा चेहरा तलाशा जा रहा है जो बंगाल में पार्टी को पुनर्जीवित कर सके।

अध्यक्ष पद अब भी अटका, लेकिन फैसले की घड़ी नजदीक

राष्ट्रीय अध्यक्ष को लेकर असहमति भले (National President) बनी हुई हो, लेकिन 19 राज्यों में संगठनात्मक चुनाव पूरे होते ही राष्ट्रीय निर्वाचन अधिकारी के. लक्ष्मण प्रेस कॉन्फ्रेंस में चुनाव कार्यक्रम का ऐलान करेंगे। भाजपा के सामने चुनौती सिर्फ नेतृत्व चयन की नहीं, बल्कि राजनीतिक संतुलन, सामाजिक समीकरण और 2029 की तैयारी की भी है। आगामी दिनों में जो भी नाम सामने आएगा, वह सिर्फ एक अध्यक्ष नहीं, बल्कि भाजपा के अगले चरण का चेहरा होगा।