उत्तरकाशी, 29 जून। Natural Disaster : उत्तराखंड के उत्तरकाशी जनपद के बड़कोट क्षेत्र में रविवार देर रात बादल फटने से आई भीषण तबाही ने न केवल 17 मजदूरों को लील लिया, बल्कि एक बार फिर राज्य की आपदा प्रबंधन क्षमताओं और सरकार की संवेदनशीलता पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। रात लगभग 1 बजे हुए इस हादसे में निर्माण कार्य में जुटे सभी मजदूर तेज़ धार वाले सैलाब में बह गए, जिनकी तलाश अभी भी जारी है।
आपदा प्रबंधन पर सवाल
राज्य सरकार ने बीते वर्षों में उत्तराखंड को आपदा के लिहाज़ से संवेदनशील क्षेत्र मानते हुए “डिजास्टर रेस्पॉन्स मैकेनिज़्म” की बात जरूर की, लेकिन हकीकत ये है कि हादसे के बाद ही प्रशासन हरकत में आता है। सवाल उठता है कि क्या बड़कोट जैसे संवेदनशील क्षेत्र में रात में निर्माण कार्य जारी रखना, खासकर मानसून के दौरान, प्रशासनिक लापरवाही नहीं थी?
विपक्ष ने उठाए सवाल
हादसे के बाद विपक्षी दलों ने प्रदेश सरकार को घेरा है। कांग्रेस के प्रदेश प्रवक्ता ने कहा, “उत्तराखंड हर साल प्राकृतिक आपदाओं से जूझता है, लेकिन सरकार की तैयारी सिर्फ़ कागज़ों तक सीमित है।”
वहीं, सरकार की ओर से आपदा राहत मंत्री ने त्वरित राहत कार्यों का दावा किया, लेकिन जमीनी हकीकत – SDRF के देरी से पहुंचने और अवरुद्ध मार्गों की समस्या – एक अलग कहानी बयां करती है।
चारधाम यात्रा पर असर
घटना का असर धार्मिक और पर्यटन गतिविधियों पर भी पड़ा है। यमुनोत्री राष्ट्रीय राजमार्ग के कई हिस्से अवरुद्ध हो गए हैं, जिससे न केवल स्थानीय लोगों को परेशानी हो रही है, बल्कि चारधाम यात्रा पर भी खतरा मंडराने लगा है। स्यानाचट्टी क्षेत्र में नदी के बहाव में रुकावट आने से होटलों और दुकानों को खतरा पैदा हो गया है।
राजनीतिक नीतियों की असंतुलित प्राथमिकता
उत्तराखंड में बीते कुछ वर्षों में निर्माण कार्य और सड़क परियोजनाओं को तेजी से आगे बढ़ाया गया। लेकिन इन कार्यों की स्थानीय भूगोल और जलवायु के अनुकूल योजना न होना, बार-बार आपदा को दावत देता दिख रहा है। राज्य की सरकारों ने “विकास” के नाम पर जो नीतियां अपनाई हैं, वे अब “विनाश” में तब्दील होती नजर आ रही हैं।
केंद्र और राज्य सरकार की साझा जिम्मेदारी
यह घटना केवल राज्य सरकार की ही नहीं, बल्कि केंद्र की भी नीति निर्धारण और आपदा पूर्व चेतावनी तंत्र की विफलता को उजागर करती है। गृह मंत्रालय और NDRF को अब तक केवल “रिएक्शनरी” भूमिका में देखा गया है, जबकि ज़रूरत प्रिवेंटिव मैकेनिज़्म की है।
प्राकृतिक आपदा या नीति की विफलता?
उत्तरकाशी की घटना केवल एक प्राकृतिक आपदा (Natural Disaster) नहीं, बल्कि यह बताती है कि प्रशासनिक सतर्कता, वैज्ञानिक दृष्टिकोण और राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी से मानव जीवन बार-बार संकट में डाला जा रहा है। आने वाले समय में यदि सरकारें विकास और पर्यावरण के बीच संतुलन नहीं बना सकीं, तो ऐसे हादसे ‘दुर्घटनाएं’ नहीं, बल्कि ‘नीति जनित त्रासदी’ कहलाएंगे।