Appeal to Naxal Leader : बंदूक नहीं, बाहों का आलिंगन चाहिए…! हम हथियार नहीं, आपका साथ चाहते है ‘दादा’…माओवादी नेता ‘देवजी’ की पोती का भावुक VIDEO वायरल यहां देखें

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रायपुर, 31 मई। Appeal to Naxal Leader : छत्तीसगढ़ के अबूझमाड़ क्षेत्र में हुई मुठभेड़ में नक्सली सुप्रीमो बसव राजू की मौत के बाद CPI (माओवादी) संगठन में नए महासचिव की तलाश शुरू हो गई है। इसी क्रम में संगठन के शीर्ष नेता और सीसी (सेंट्रल कमेटी) मेंबर थिपरि तिरुपति उर्फ देवजी का नाम चर्चा में है। लेकिन अब इस चर्चित नेता के नाम पर उसकी पोती इटलू सुमा थिपरि का एक भावुक पत्र और वीडियो संदेश सामने आया है, जिसने पूरे क्षेत्र का ध्यान खींचा है।

सुमा का भावुक संदेश- दादा, क्या तुम हमें भूल गए…?

सुमा के वीडियो में वो रोते हुए अपने दादा से कहती है “दादा, आप जहां भी हो, लौट आओ। माँ हर रोज आपकी तस्वीर देखकर रोती है। क्या आपने हमें बिल्कुल भूल दिया है? हम सिर्फ आपको गले लगाना चाहते हैं… हथियार नहीं।”

इस संदेश के सामने आने के बाद यह वीडियो स्थानीय मीडिया और सोशल मीडिया पर वायरल हो गया है, और अब यह जंगलों में बंदूक थामे बैठे कई अन्य नक्सलियों को भी सोचने पर मजबूर कर रहा है।

पत्र में लिखी गई मार्मिक बातें

  • “दादा, जब आप घर छोड़कर गए थे, मैं बहुत छोटी थी। लेकिन अब समझ सकती हूं कि आपने क्या खोया और हमने क्या खोया।”
  • “आपका सपना शायद कुछ और था, लेकिन हमारे लिए आप एक पिता जैसे हैं। आइए, अब इस जंग को खत्म कीजिए।”
  • “हमें अपने दादा वापस चाहिए, नेता नहीं।”

कौन हैं थिपरि तिरुपति उर्फ देवजी?

  • तेलंगाना मूल के तिरुपति माओवादी संगठन में करीब तीन दशक से सक्रिय हैं।
  • वे संगठन की सेंट्रल कमेटी के वरिष्ठ सदस्य हैं और हाल ही में मारे गए बसव राजू के संभावित उत्तराधिकारी माने जा रहे हैं।
  • सुरक्षा एजेंसियों के अनुसार, तिरुपति छत्तीसगढ़, ओडिशा और तेलंगाना में सक्रिय कई बड़े ऑपरेशनों का मास्टरमाइंड रह चुका है।

संदेश का असर: क्या बदलाव आएगा?

  • सुरक्षा विशेषज्ञ मानते हैं कि यह वीडियो और पत्र उन कई युवाओं और नक्सल समर्थकों को भावनात्मक रूप से झकझोर सकता है, जो अब हिंसा की राह छोड़ने का मन बना रहे हैं।
  • कुछ सामाजिक कार्यकर्ताओं ने सरकार से अनुरोध किया है कि यदि तिरुपति आत्मसमर्पण करते हैं, तो उन्हें परिवार से मिलने का अवसर और पुनर्वास योजना दी जाए।

इटलू सुमा थिपरि का यह संदेश महज एक पारिवारिक अपील नहीं, बल्कि आतंक और हिंसा से बाहर आने का एक मानवीय दरवाज़ा है। यह घटना बताती है कि बंदूक के (Appeal to Naxal Leader) पीछे भी एक इंसान है – और किसी के लिए वह सिर्फ एक ‘नेता’ नहीं, ‘परिवार’ है।