कानपुर/उत्तर प्रदेश, 23 अगस्त। Dog Attacked : कानपुर में कॉलेज से लौट रही एक बी.बी.ए. छात्रा पर आवारा कुत्तों के झुंड ने हमला कर दिया, जिससे उसके चेहरे पर गंभीर चोटें आईं और उसे 17 टांके लगाने पड़े। छात्रा की हालत नाजुक है और उसे खाने-पीने में भी दिक्कत हो रही है। यह घटना इलाके में दहशत का माहौल पैदा कर रही है, जहाँ लोग अब घरों से निकलने में भी डर रहे हैं।
दरअसल, सोमवार 20 अगस्त को श्याम नगर इलाके में कॉलेज से लौट रही छात्रा पर तीन आवारा कुत्तों ने जानलेवा हमला कर दिया। इस हमले में वह गंभीर रूप से घायल हो गई। सबसे भयावह बात यह है कि उसका गाल फटकर दो टुकड़ों में बंट गया, और डॉक्टरों को उसके चेहरे पर एक-दो नहीं बल्कि 17 टांके लगाने पड़े।
पीड़िता की पहचान वैष्णवी साहू के रूप में हुई है, जो एलन हाउस रूमा कॉलेज में BBA अंतिम वर्ष की छात्रा है। घटना उस वक्त हुई जब वह रोज़ की तरह कॉलेज से घर लौट रही थी।
कुत्तों और बंदरों के बीच झगड़ा बना काल
रिपोर्ट्स के मुताबिक, इलाके में आवारा कुत्तों और बंदरों के बीच लड़ाई चल रही थी। इसी अफरा-तफरी में वैष्णवी जैसे ही वहां से गुजर रही थी, तीन कुत्तों ने उस पर झपट्टा मार दिया। उसे सड़क पर घसीटा गया, चेहरे, नाक और शरीर को नोचा गया, और खून से लथपथ हालत में छोड़ा गया।
आवाज सुनकर दौड़े लोग
स्थानीय लोगों ने जब छात्रा की दिल दहला देने वाली चीखें सुनीं, तो लाठी-डंडे लेकर दौड़ पड़े और बड़ी मुश्किल से कुत्तों को भगाया। उस वक्त तक छात्रा का चेहरा लहूलुहान हो चुका था। परिवार को सूचना दी गई, और उसे तत्काल कांशीराम अस्पताल ले जाया गया।
डॉक्टर बोले– चोटें बेहद गहरी, खाना तक नहीं खा पा रही
डॉक्टरों के मुताबिक, छात्रा के दाहिने गाल पर गहरी चोटें हैं, जो दो हिस्सों में बंट चुका था। उसे सिर्फ तरल आहार दिया जा रहा है, वो भी स्ट्रॉ के ज़रिए। परिवार का कहना है कि वैष्णवी शारीरिक के साथ-साथ मानसिक रूप से भी टूट चुकी है।
परिवार की गुहार, सरकार कुछ करे, वरना हर दिन किसी की बेटी यूँ ही कटेगी। वैष्णवी के परिजनों ने राज्य सरकार और नगर निगम से अपील की है कि, या तो इन कुत्तों को शेल्टर में ले जाएं, या सड़कों से हटाएं। हमारी बेटी की ज़िंदगी बर्बाद हो गई, हम नहीं चाहते किसी और की बेटी भी ऐसा झेले।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बीच उठे सवाल
यह घटना उस वक्त सामने आई है जब हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि आवारा कुत्तों को नसबंदी के बाद वापस सड़कों पर छोड़ा जा सकता है। यह निर्णय पशु अधिकारों और मानव अधिकारों के बीच संतुलन बनाने के प्रयास के तहत लिया गया था। लेकिन कानपुर की इस भयावह घटना ने एक बार फिर इस फैसले की व्यावहारिकता और ज़मीनी हकीकत पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।
अब यह सवाल उठने लगा है, क्या नसबंदी भर से कुत्ते शांत (Dog Attacked) और सुरक्षित हो जाएंगे?जब शहरों की सड़कों पर कुत्ते खुलेआम हमला कर रहे हैं, तो क्या उन्हें वहीं छोड़ देना सही है? इंसान की जान की कीमत और सड़क पर चलने का हक क्या कमतर हो गया है?