Exit Poll Breaking: Election results of 5 states on 3rd December...! How effective will the exit poll be?Exit Poll Breaking:
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नई दिल्ली, 30 नवंबर। Exit Poll Breaking : जी हां, पांच राज्यों के चुनाव परिणाम 3 दिसंबर को आएंगे लेकिन उससे पहले आज एग्जिट पोल में तस्वीर साफ हो जाएगी। छत्तीसगढ़ में क्या कका जीतेगी, एमपी में क्या बीजेपी वापसी कर रही है, राजस्थान में कांग्रेस सत्ता बचा पाएगी… ऐसे न जाने कितने सवाल सियासी फिजा में तैरने लगेंगे। ऐसे में कहा जा सकता है कि एग्जिट पोल जनता का मूड बताते हैं। वोटिंग पैटर्न दिखाते हैं और नेताओं की धड़कनें भी बढ़ाते हैं।

जब तक अंतिम परिणाम नहीं आ जाते, एग्जिट पोल की ही चर्चा होती रहती है। यह हर चुनाव के बाद होता है लेकिन क्या आप जानते हैं कि एग्जिट पोल किया कैसे जाता है। इसकी शुरुआत कब हुई थी और क्या यह 100 प्रतिशत विश्वसनीय होता है? क्या एग्जिट पोल हमेशा सही होते रहे हैं? जब तक एग्जिट पोल आता है, इन सवालों का जवाब ढूंढ लेते हैं। पहले जान लेते हैं कि एग्जिट पोल किसे कहते हैं?

एग्जिट पोल क्या होते हैं?

दरअसल, एग्जिट पोल करने वालों की एक टीम होती है जो वोटरों से सवाल करती है जब वे मतदान केंद्र से बाहर निकल रहे होते हैं। मतदान के दिन इकट्ठा की गई इसी जानकारी के आधार चुनाव परिणाम की भविष्यवाणी की जाती है। भारत में कई संगठन एग्जिट पोल करते हैं।

ओपिनियन पोल से कितना अलग?

हां, एग्जिट पोल और ओपिनियन पोल में भ्रमित मत होइएगा। ओपिनियन पोल चुनाव से पहले और एग्जिट पोल मतदान पूरा होने के बाद सामने आते हैं। ओपिनियन पोल में वोटर अपनी राय देते हैं उसी आधार पर सर्वे सामने आता है। विडंबना यह है कि इसमें वे लोग भी अपनी राय दे सकते हैं जो वोटिंग करें ही न। जबकि एग्जिट पोल अपेक्षाकृत सटीक कहा जा सकता है क्योंकि इसमें वे लोग शामिल होते हैं जो चुनाव वाले दिन वोट डालकर निकले होते हैं। नियम यह कहता है कि आखिरी चरण का मतदान खत्म होने के आधे घंटे बाद एग्जिट पोल दिखाए जा सकते हैं। आज शाम यह समयसीमा साढ़े छह बजे की है। अंग्रेजी में Exit का मतलब यहां वोट डालकर पोलिंग स्टेशन से एग्जिट हुए वोटर से है।

वैसे तो एग्जिट पोल 1980 के दशक में शुरू हो गए थे। सीएसडीएस ने देशव्यापी सर्वे किया और जब दूरदर्शन पर 1996 में यह प्रसारित हुआ तब लोकप्रियता बढ़ गई। एग्जिट पोल में जिसके खिलाफ रुझान आते हैं वे नेता या पार्टियां आरोप लगाते हैं कि एजेंसियों का तरीका, सवाल, प्रश्न का समय, पद्धति पक्षपाती थी। आरोप यह भी लगते हैं कि एग्जिट पोल पारदर्शिता और जवाबदेही से परे होते हैं। वैसे, इस तरह के सर्वे को कई फैक्टर प्रभावित करते हैं इसलिए इसे 100 प्रतिशत सही नहीं माना जा सकता है। 1998 से प्राइवेट न्यूज चैनलों पर एग्जिट पोल का प्रसारण होता आ रहा है। दुनिया की बात करें तो सबसे पहले ऐसा सर्वे अमेरिका में हुआ था।

कितना सही होता है अनुमान

2004 का लोकसभा चुनाव हो या 2009 का आम चुनाव- इसमें लगभग सभी एजेंसियों के दावे फेल हो गए थे। 2004 में दावा किया गया था कि एनडीए की वापसी हो रही है लेकिन कांग्रेस सत्ता में आई। 2009 में भी ऐसा ही हुआ। हालांकि 2014 में मोदी लहर में एग्जिट पोल काफी हद तक सटीक अनुमान लगा पाए। 2014 के चुनाव में सबसे सटीक दावा ‘चाणक्य’ एजेंसी का रहा था। उसका अनुमान था कि एनडीए को बंपर 340 सीटें मिल सकती हैं और यूपीए 70 पर सिमट जाएगी। नतीजे लगभग यही रहे। 2019 के आम चुनाव में सभी एग्जिट पोल्स 300 के आसपास सीटें दे रहे थे लेकिन इतनी सीटें अकेले बीजेपी ले आई।

बंगाल चुनाव में फ्लॉप रहे एग्जिट पोल

2021 का पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव आपको याद होगा। भाजपा ने इतना जबर्दस्त चुनाव प्रचार किया था कि लग रहा था वहां मोदी लहर पैदा हो गई है। एग्जिट पोल के नतीजों ने भी यही संकेत दिए। ज्यादातर एजेंसियों-चैनलों ने भाजपा को सबसे बड़ी पार्टी बताया था लेकिन नतीजों ने बता दिया कि बीजेपी का ग्राफ जरूर बढ़ा लेकिन भगवा पार्टी ममता बनर्जी का किला नहीं हिला पाई।

हालांकि 2020 के दिल्ली विधानसभा चुनाव रहे हों या यूपी का 2012 का चुनाव एग्जिट पोल ने सटीक अनुमान लगाया। इस लिहाज से देखें तो एग्जिट पोल को पक्का तो नहीं कह सकते लेकिन एक संकेत या संदेश (Exit Poll Breaking) जरूर दे जाते हैं।

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