
कटरा/जम्मू-कश्मीर, 28 अगस्त। Havoc on Trikuta Mountain : माता वैष्णो देवी के त्रिकुटा पर्वत पर मंगलवार को हुए भयंकर भूस्खलन ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है। अब तक 34 श्रद्धालुओं की मौत की पुष्टि हो चुकी है, जबकि 20 से अधिक लोग घायल हैं। इस दर्दनाक हादसे के बाद वैष्णो देवी श्राइन बोर्ड, प्रशासन और सरकार की कार्यशैली पर कड़े सवाल उठने लगे हैं।
कटरा निवासी फूट-फूट कर रोया

हजारों श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र माने जाने वाले त्रिकुटा पर्वत पर मचे सैलाब और पत्थरों की तबाही ने श्रद्धालुओं को स्तब्ध कर दिया है। सोशल मीडिया पर वायरल एक वीडियो में एक कटरा निवासी फूट-फूट कर रोते हुए कहता है- माता रानी के पहाड़ों की जड़ें खोद दी हैं आपने। त्रिकुटा पर्वत को बख्श दो। ये विकास नहीं, विनाश है।”
उसने श्राइन बोर्ड पर आरोप लगाया कि व्यवसायिक लाभ के लिए माता के धाम में पेड़ों की कटाई, जेसीबी से खुदाई और डीजल वाहनों की आवाजाही ने प्राकृतिक संतुलन को बिगाड़ दिया है।
सोशल मीडिया पर छाया दुख और गुस्सा
भक्त सोशल मीडिया पर पूछ रहे हैं, “क्या हम दोषी हैं?” “क्या मां की तपस्या में हम ही बाधा डाल रहे हैं?” दुर्गा सप्तशती की क्षमा प्रार्थना का हवाला देते हुए कई श्रद्धालु इस त्रासदी को आध्यात्मिक चेतावनी मान रहे हैं।
हादसे की वजह
मंगलवार दोपहर बाद करीब 3 बजे अर्धकुंवारी मां के पास भूस्खलन हुआ। हादसा भारी बारिश के बीच हुआ, जिसकी चेतावनी पहले ही दी जा चुकी थी। इसके बावजूद तीर्थ यात्रा जारी रखने की अनुमति देना अब बड़ी चूक मानी जा रही है।
क्या कहता है प्रशासन?
पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने घटना पर तीखी प्रतिक्रिया देते हुए सवाल किया, जब मौसम विभाग ने चेतावनी दी थी, तो फिर तीर्थयात्रियों को क्यों नहीं रोका गया? क्या उन्हें सुरक्षित स्थानों पर नहीं ले जाया जा सकता था?

रेलवे पर भी पड़ा असर
- 58 ट्रेनें रद्द,
- 64 ट्रेनें बीच रास्ते में रोकी गईं (जम्मू और कटरा स्टेशन से)
उठते सवाल
- त्रिकुटा पर्वत पर लगातार बढ़ते निर्माण कार्य
- पेड़ों की कटाई, डीजल वाहनों की परमिशन
- बाणगंगा से भैरवनाथ तक गंदगी और कूड़े के ढेर
- श्राइन बोर्ड की व्यवसायिक सोच
इन सभी मुद्दों पर जनता अब खुलेआम विरोध दर्ज करा रही है। स्थानीय लोगों का कहना है कि अगर यही स्थिति बनी रही तो न मां रहेंगी, न यात्रा, न ही त्रिकुटा पर्वत।
यह हादसा सिर्फ एक प्राकृतिक आपदा नहीं, बल्कि मानवजनित लापरवाही (Havoc on Trikuta Mountain) और अंधाधुंध विकास की भारी कीमत भी है। अब ज़रूरत है श्रद्धा के साथ-साथ संवेदनशीलता और संतुलित विकास नीति की। मां की तपस्या में बाधा न बने, यही अब सबसे बड़ी पुकार है।
