रायपुर, 08 जुलाई। Old Notes Recovered : एक बंद दरवाजा खुला… और सालों से दबी एक सड़ती हुई सच्चाई बाहर आ गई। उत्तर प्रदेश में एक सरकारी दफ्तर के ग्यारह सालों से बंद पड़े कमरे को जब हाल ही में खोला गया, तो वहां एक अटैची मिली, जिसमें भरे थे पुराने 500 और 1000 रुपये के ‘एक्सपायर्ड’ नोट।
यह सनसनीखेज मामला उत्तर प्रदेश के अंबेडकरनगर जिले से सामने आया है, जहां जिला अस्पताल परिसर में स्थित एक पूर्व मुख्य चिकित्सा अधिकारी (CMO) के बंद आवास से 22 लाख रुपये की नकदी बरामद की गई है। यह रकम 2016 में हुई नोटबंदी के बाद भी बिना बदले हुई अवस्था में मिली है।
दीवारें झड़ रही थीं, पर रिश्वत का बोझ जस का तस
कमरा खंडहर बन चुका था, दीवारों की पपड़ी गिर रही थी, फर्श उखड़ चुका था, लेकिन कोने में रखी वह अटैची अब भी वैसी ही थी, जैसे किसी का राज़ अभी तक खुलने से डर रहा हो।
अटैची में रखे गए पुराने नोट आज कोई मोल नहीं रखते, लेकिन उनका अतीत बहुत कुछ कहता है। ये वही पैसे हैं जो कभी ‘ऊपरी आमदनी’ के रूप में किसी भ्रष्ट अधिकारी की अलमारी में चुपचाप घुसाए गए थे।
जब सरकारी योजनाओं के लिए “फंड की कमी” का रोना रोया जाता है, किसान इंतजार करते हैं कर्ज माफी का, स्कूल बच्चे बिना बेंच-पुस्तक के चलाते हैं पढ़ाई, ग्रामीण अस्पतालों में दवा नहीं, तो उसी तंत्र में कहीं सड़ा पड़ा ये ‘फंड’ अपनी कहानी कहता है।
एक चुप्पी, जो सब कुछ कह गई
इस घटना ने एक बार फिर प्रशासनिक भ्रष्टाचार की परतें उधेड़ दी हैं। अटैची जैसे मौन होकर चीख रही हो, “मुक्त कर दो मुझे।” एक समय था जब यह पैसा किसी की मेहनत से निकला था, फिर किसी की लालच बन गया, और अब ‘रद्दी’ होकर बेकार पड़ा है। “मर गया अधिकारी, जिंदा रही रिश्वत” यह पंक्ति अब सिर्फ व्यंग्य नहीं, एक कटु यथार्थ बन चुकी है।
अब सवाल ये है
क्या ऐसे सड़ते हुए पैसों की गंध कभी व्यवस्था (Old Notes Recovered) को जागा पाएगी? क्या अब भी “फंड की कमी” कहने वालों को इन अलमारियों की तलाशी लेनी चाहिए? यह घटना एक सबक है कि रिश्वत चाहे जितनी भी सुरक्षित रखी जाए, उसकी उम्र भी ‘नोटबंदी’ से तय हो जाती है। और अंत में, वह सिर्फ एक बोझ बनकर ही रह जाती है।