बेंगलुरु, 4 जून। RCB Match Heartbreak 2025 : IPL 2025 की ऐतिहासिक जीत के बाद रॉयल चैलेंजर्स बेंगलुरु (RCB) के जश्न में जो उमंग होनी चाहिए थी, वह चीखों और आँसुओं में बदल गई। 18 साल के लंबे इंतज़ार के बाद मिली पहली ट्रॉफी का जश्न इतना भारी पड़ गया कि 13 साल की दिव्यांशी, 19 साल की साहना, 20 साल का भौमिक और 21 साल के श्रवण जैसे कई युवा अब इस दुनिया में नहीं हैं। बुधवार को बेंगलुरु के चिन्नास्वामी स्टेडियम में मची भगदड़ ने 11 ज़िंदगियाँ लील लीं और 30 से अधिक लोगों को घायल कर दिया।
ये कोई धार्मिक उत्सव नहीं था, न ही कोई राजनीतिक रैली, फिर भी जो हुआ, उसने देश को हिला कर रख दिया। RCB की जीत की खुशी में बेंगलुरु की सड़कों पर करीब 3 लाख से ज़्यादा लोग उमड़ पड़े, जबकि स्टेडियम की क्षमता महज 35 हज़ार की (RCB Match Heartbreak 2025)थी। नतीजा? एक खौफनाक हादसा, जिसे रोका जा सकता था, अगर जिम्मेदारों ने अपनी ज़िम्मेदारी समय पर निभाई होती।
“जिंदगी का टिकट नहीं होता…”
दिव्यांशी सिर्फ 13 साल की थी। क्रिकेट उसके लिए बस एक खेल नहीं था, जुनून था। वो अपने भाई के साथ जश्न देखने आई थी, लेकिन लौटकर नहीं गई। उसकी माँ अस्पताल के बाहर फूट-फूट कर रो रही थीं — “मैंने उसे सिर पर चोटी बांधकर भेजा था, सोचा था कुछ घंटों में लौट आएगी। अब वो कभी नहीं लौटेगी…”
इंजीनियरिंग का छात्र अर्जुन, जो अपने दोस्तों के साथ सिर्फ एक झलक पाने आया था, अब सिर्फ यादों में रह गया है। उसके पिता की आंखों में गुस्सा और ग़म दोनों साफ झलक रहे थे — “मेरा बेटा तो जश्न में गया था, तुमने उसे लाश बनाकर लौटा (RCB Match Heartbreak 2025)दिया।”
“भीड़ में दबे सपने”
भीड़ जब बेकाबू हुई, तब गेट नंबर 7 पर करीब 700 लोग एकसाथ अंदर घुसने की कोशिश कर रहे थे। पुलिस की संख्या कम थी, गेट बंद थे और सूचना थी कि रोड शो कैंसिल हो गया है — लेकिन लोगों को स्टेडियम में बुलाया गया था। कई महिलाएं गेटों पर चढ़ गईं, सैकड़ों लोगों ने गेट तोड़ डाले। उसके बाद जो हुआ, वो मौत का तांडव था।
किसी का हाथ छूटा, किसी की चप्पल गिर गई… और किसी की साँसे। जब तक किसी को समझ आता, तब तक कुछ लोग ज़मीन पर गिर चुके थे, कुचले जा चुके (RCB Match Heartbreak 2025)थे, और कुछ वहीं दम तोड़ चुके थे।
“जूते-चप्पल रह गए पीछे”
जश्न के बाद मैदान के भीतर जब ट्रॉफी के साथ डांस हो रहा था, तब बाहर चप्पलें, टोपियाँ और टूटे मोबाइल बिखरे पड़े थे। ये गवाह हैं उन सपनों के जो कभी लौट कर नहीं आएंगे। स्टेडियम के बाहर पड़े इन सामानों ने बता दिया कि इस जीत की कीमत कुछ बहुत भारी थी।
“जिम्मेदार कौन?”
राज्य सरकार ने घटना की मजिस्ट्रेट जांच के आदेश दिए हैं और मृतकों के परिजनों को 10 लाख रुपये का मुआवज़ा देने की घोषणा की है। मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने स्वीकार किया कि कार्यक्रम राज्य सरकार और क्रिकेट संघ की साझेदारी में हुआ था। लेकिन क्या सिर्फ जांच या मुआवज़ा उन ज़िंदगियों को लौटा सकता है जो सिर्फ क्रिकेट प्रेम में कुर्बान हो गईं?
“मौसम जीत का था, लेकिन आसमान मातम का हो गया”
जब खिलाड़ी ट्रॉफी के साथ तस्वीरें खिंचवा रहे थे, तब अस्पताल में माँ-बाप अपने बच्चों की पहचान कर रहे थे। नेताओं ने शोक जताया, बयान दिए और चले गए, लेकिन कुछ दरवाज़े ऐसे बंद हो गए हैं जो अब कभी नहीं खुलेंगे।
RCB की ट्रॉफी जीत एक ऐतिहासिक पल हो सकता है, लेकिन उसके पीछे जो 11 चुपचाप सो गई ज़िंदगियां हैं, वो इस जश्न पर सवालिया निशान हैं। क्या अब भी हम यही कहेंगे कि “ये बस एक हादसा था”?
कभी-कभी जीत, इतनी भारी पड़ जाती है कि उसका बोझ सिर्फ कंधों पर नहीं, दिलों पर महसूस होता है।