अहमदाबाद, 29 जून। Shameful : गुजरात हाईकोर्ट से एक बेहद अस्वाभाविक और शर्मनाक घटना सामने आई है, जिसने ना सिर्फ न्यायपालिका की गरिमा को ठेस पहुंचाई बल्कि वर्चुअल कोर्ट की अनुशासनहीनता पर भी बहस छेड़ दी है।
20 जून को जस्टिस निरजर एस. देसाई की अदालत में एक मामले की वर्चुअल सुनवाई चल रही थी, जब एक शख्स ने ‘समद बैटरी’ नाम से लॉगइन कर सुनवाई में हिस्सा लिया। लेकिन जो दृश्य कैमरे में कैद हुआ, उसने कोर्ट रूम के सभी प्रतिभागियों को हैरान कर दिया- वह व्यक्ति टॉयलेट में बैठा हुआ था, और कैमरे में साफ़-साफ़ दिख रहा था कि वह स्वच्छ क्रिया में लिप्त था।
कैमरे में कैद हुआ पूरा दृश्य
वीडियो में दिखा कि व्यक्ति पहले तो गले में ब्लूटूथ इयरफोन डाले हुए बैठा था, लेकिन जैसे ही उसने कैमरा एडजस्ट किया, यह स्पष्ट हो गया कि वह शौचालय में बैठा हुआ है। इतना ही नहीं, वह स्वयं को साफ करते हुए और फिर वॉशरूम से निकलकर दूसरे कमरे में जाते हुए भी कैमरे में रिकॉर्ड हो गयाविवादित मामला: शिकायतकर्ता ही बना प्रतिवादी
कोर्ट के रिकॉर्ड के अनुसार, यह व्यक्ति उस याचिका में प्रतिवादी था जिसमें एफआईआर रद्द करने की मांग की गई थी, और यही व्यक्ति मूल शिकायतकर्ता भी था। अदालत ने यह केस दोनों पक्षों के बीच सौहार्दपूर्ण सुलह के आधार पर समाप्त करते हुए एफआईआर रद्द कर दी। हालांकि, व्यक्ति की हरकत ने कोर्ट की प्रक्रिया को असहज बना दिया।
पहले भी हो चुकी हैं अनुशासनहीन घटनाएं
यह पहली बार नहीं है जब वर्चुअल सुनवाई के दौरान शिष्टाचार का उल्लंघन हुआ हो।
- अप्रैल 2025 में गुजरात हाईकोर्ट ने एक व्यक्ति पर वीडियो कॉल के दौरान धूम्रपान करने पर ₹50,000 का जुर्माना लगाया था।
- मार्च में दिल्ली की एक अदालत में भी एक वादी अशोभनीय वस्त्रों में पेश हुआ था, जिससे कोर्ट को कार्यवाही स्थगित करनी पड़ी थी।
सोशल मीडिया पर भी उड़ा मज़ाक, उठे सवाल
इस वीडियो को X (पूर्व में ट्विटर) पर @advsanjoy नामक यूजर ने पोस्ट करते हुए लिखा, “क्या हम उम्मीद कर सकते हैं कि कम से कम वादी सुनवाई के दौरान शौच तो न करें? हे भगवान!”
यह पोस्ट 65,000 से अधिक बार देखा गया और 500 से ज्यादा लाइक्स मिले। कई यूजर्स ने इसे कोर्ट की अवमानना बताया, जबकि कुछ ने वीडियो को फेक कहकर नकारा। परंतु एक बात साफ़ है- इस घटना ने वर्चुअल कोर्ट सिस्टम की गंभीरता और अनुशासन को लेकर सवाल खड़े कर दिए हैं।
क्या कहता है न्याय व्यवस्था?
न्यायिक विशेषज्ञों का मानना है कि वर्चुअल कोर्ट की सुविधा संवेदनशील (Shameful) और गरिमामय मंच है, जिसे कोई आम वीडियो कॉल नहीं समझा जाना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट्स पहले ही इसके लिए आचार संहिता (Code of Conduct) जारी कर चुके हैं, लेकिन लापरवाही और अनदेखी ऐसी घटनाओं को जन्म दे रही है।