उरेन्द्र साहू/गरियाबंद। Sonasilli Created History : गरियाबंद जिले के फिंगेश्वर क्षेत्र के सोनासिल्ली गांव में छोटे स्कूली बच्चों ने मिसाल कायम की है। ये बच्चे हर रविवार छुट्टी के दिन पढ़ाई के साथ-साथ गांव की सफाई में जुट जाते हैं। बच्चों ने अपनी पॉकेट मनी से टी-शर्ट खरीदी और घरों से फावड़ा, तगड़ी जुटाकर पिछले एक साल से स्वच्छता अभियान चला रहे हैं।
उनका लक्ष्य है कि गांव को बीमारियों और गंदगी से मुक्त किया जाए। इन बच्चों की मेहनत और सोच ने उन्हें गांव के ही नहीं, युवाओं के लिए भी प्रेरणा स्रोत बना दिया है। सोनासिल्ली के ये नन्हे सिपाही सच्चे अर्थों में स्वच्छता के असली दूत बन चुके हैं। बिलकुल, यहां सोनासिल्ली गांव के नन्हे बच्चों के इस अद्भुत स्वच्छता अभियान से जुड़ी कुछ और जानकारी दी जा रही है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि यह केवल एक छोटा प्रयास नहीं, बल्कि एक सामाजिक बदलाव की शुरुआत है:
कौन हैं ये बच्चे
सोनासिल्ली गांव के ये बच्चे 6 से 12 साल की उम्र के हैं, जो पास के सरकारी स्कूल में पढ़ते हैं।
ये बच्चे खुद ही टोली बनाकर सफाई अभियान की योजना बनाते हैं।
हर रविवार सुबह गांव के अलग-अलग हिस्सों की सफाई करते हैं।
क्या करते हैं ये बच्चे?
गांव की गलियों, नालियों, स्कूल परिसर और सार्वजनिक स्थलों की सफाई करते हैं।
कचरे को इकट्ठा कर सही स्थान पर निस्तारित करते हैं।
पत्थरों और कूड़े से पटी नालियों को खोलना, झाड़ियों को काटना, और गांव को स्वच्छ एवं सुंदर बनाना इनका उद्देश्य है।
संसाधन कहां से लाते हैं?
बच्चों ने पॉकेट मनी बचाकर टी-शर्ट और झाड़ू आदि सामान खरीदे हैं ताकि वे एक पहचान बना सकें। फावड़ा, तगड़ी, टोकरी** जैसे औजार वे अपने घरों से लाते हैं या गांववालों से उधार लेते हैं।
प्रेरणा और प्रभाव
यह अभियान अब सिर्फ बच्चों तक सीमित नहीं रहा। कई युवाओं और ग्रामीणों ने भी उनसे प्रेरणा लेकर सफाई में भाग लेना शुरू किया है।
गांव में स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं में कमी देखी जा रही है।
स्कूल के शिक्षक, गांव के बुजुर्ग और अभिभावक भी इन बच्चों के समर्पण की सराहना कर रहे हैं।
प्रशासन और आगे की योजना
यदि स्थानीय प्रशासन और पंचायत सहयोग करें तो इस अभियान को और व्यापक स्तर पर फैलाया जा सकता है।
बच्चों का सपना है कि पूरा गांव एक दिन “स्वच्छता मॉडल गांव” के रूप में जाना जाए।
इन नन्हे बच्चों का यह स्वप्रेरित अभियान (Sonasilli Created History) यह दिखाता है कि यदि इच्छा हो तो बिना किसी बड़े संसाधन के भी बड़ा बदलाव लाया जा सकता है। ये बच्चे न केवल गांव की तस्वीर बदल रहे हैं, बल्कि पूरे समाज को एक सशक्त संदेश भी दे रहे हैं, स्वच्छता से ही समृद्धि आती है।