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कानपुर, 20 सितंबर। Unique Rape Case : कानपुर के अकबरपुर कोतवाली में सोमवार देर रात सात साल के बच्चे पर पांच साल की बच्ची से रेप का मामला दर्ज किया गया। मुकदमा तो दर्ज हो गया पर कार्रवाई के लिए कानून ने ही हाथ बांध रखे हैं। विशेषज्ञों के मुताबिक, कानूनन 12 साल से कम उम्र के बच्चों पर कोई अपराध दर्ज तो हो सकता है पर उनके खिलाफ कार्रवाई नहीं हो सकती। लिहाजा, पुलिस जिम्मेदार एजेंसियों की गाइडलाइन के बाद बच्चे की काउंसिलिंग कराने की तैयारी में है।

बच्ची को घर ले जाकर रेप का आरोप

कोतवाली क्षेत्र के एक गांव में 17 सितंबर की शाम मोहल्ले के बच्चे खेल रहे थे। पांच साल की बच्ची को पड़ोसी दंपति का सात साल का बेटा अपने साथ घर ले आया। आरोप है कि उसने बच्ची के साथ दुष्कर्म किया। रोते हुए घर पहुंची बच्ची से जानकारी मिलने पर उसकी मां ने पड़ोसी को उलाहना दिया। बच्चे के परिजन झगड़ने लगे। इस पर उसने कोतवाली में बच्चे के खिलाफ दुष्कर्म का मुकदमा दर्ज करा दिया। कोतवाल सतीश सिंह ने बताया कि मेडिकल रिपोर्ट और अन्य तथ्यों के आधार पर रिपोर्ट बनाएंगे। कोर्ट के आदेश पर अग्रिम कार्रवाई होगी।

मासूम बच्चे पर रेप के आरोप से गांव के लोग अचंभित हैं। लोगों को घटना पर यकीन नहीं हो रहा है। अकबरपुर सीओ अरुण कुमार सिंह ने कहा कि इस तरह का पहला मामला सामने आया है। कम उम्र के कारण दंडात्मक कार्रवाई का प्रावधान नहीं बनता है। पुलिस नियमानुसार विवेचना करने के साथ कोर्ट के डायरेक्शन के आधार पर कार्रवाई करेगी। प्रोबेशन विभाग भविष्य में इस तरह के अपराध से बचने के लिए आरोपित की काउंसिलिंग करेगा।

क्‍या कहता है कानून

माती कोर्ट के वरिष्‍ठ अधिवक्‍ता जितेन्‍द्र प्रताप सिंह चौहान ने बताया कि सात साल से कम उम्र के बच्चे के अपराध में मुकदमा दर्ज करने का प्रावधान नहीं है, लेकिन सात साल से 12 साल तक के बच्चे के अपराध की रिपोर्ट पुलिस दर्ज कर सकती है, लेकिन धारा 82 सीआरपीसी के तहत ऐसे मामले में सजा का कोई प्रावधान नहीं है। सिर्फ आरोपित बच्चे के सुधार के लिए कदम उठाए जाएंगे। आरोपित की कांउसिलिंग कराई जाएगी। 

क्राइम सीन देखकर दोहराने का प्रयास

मनोरोग चिकित्‍सक डा. राकेश यादव ने कहा कि बच्चों में गलत और सही की पहचान की क्षमता नहीं होती हैं। मोबाइल व सोशल मीडिया के दौर मे बच्चे सेक्सुअल कंटेंट व क्राइम सीन देख कर दोहराने की कोशिश करते हैं। उन्हें परिणाम की समझ नहीं होती हैं। बच्चों को इंटरनेट व मोबाइल का नियंत्रित उपयोग ही उपलब्ध कराना चाहिए।