भोपाल, 20 फरवरी। Vyapam Scams : मध्य प्रदेश के बहुचर्चित व्यापम घोटाले का फैसला आ गया है। मामले में दोषी करार दिए गए 7 लोगों को 7-7 साल की जेल की सजा सुनाई गई है। 10-10 हजार रुपये जुर्माना भी लगाया गया है। वहीं 12 आरोपियों को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया गया है। भर्ती परीक्षा घोटाला साल 2013 में सामने आया था।
केस में कुल 21 आरोपी बनाए गए थे, जिनमें से 2 आरोपियों की मौत हो चुकी है। करीब 10 साल बाद केस में फैसला सुनाया गया है। CBI की विशेष अदालत ने आज मंगलवार को पुलिस आरक्षक भर्ती परीक्षा घोटाले की सुनवाई की और दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद 7 आरोपियों को दोषी करार देते हुए कारावास की सजा सुनाई।
क्या है व्यापम और क्या लगे आरोप?
मध्य प्रदेश व्यावसायिक परीक्षा मंडल (Vyapam) मध्य प्रदेश में मेडिकल कोर्स एंट्रेस एग्जाम, इंजीनियरिंग एंट्रेस एग्जाम, भर्ती एग्जाम कराने के लिए जिम्मेदार है। एग्जाम संबंधी सभी प्रक्रियाएं व्यापम द्वारा ही की जाती हैं, लेकिन व्यापम पर आरोप लगने लगे थे कि सांठ-गांठ करके रेवड़ियों की तरह सरकारी नौकरियां बांटी जाती हैं। इसके लिए मेडिकल और इंजीनियरिंग कॉलेजों में दाखिला में फर्जीवाड़ा किया जाता है। मामला तब सामने आया, जब एक हजार फर्जी भर्तियां होने की सुगबुगाहट होने लगी। मेडिकल कॉलेज में भी 514 फर्जी भर्तियां करने का शक था।
कैसे सामने आया घोटाला?
साल 2013 में MBBS भर्ती परीक्षा के दौरान पुलिस (Vyapam Scams) ने फर्जी परीक्षार्थी पकड़े थे। जांच में फर्जी भर्ती गिरोह का खुलासा हुआ। पूछताछ में डॉ. जगदीश सागर का नाम सामने आया, जिसने पूछताछ में उस समय के शिक्षा मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा को लेकर खुलासे किए। 16 जून 2014 को लक्ष्मीकांत शर्मा गिरफ्तार हुए, जो उस समय व्यापम के अध्यक्ष भी थे। इसके बाद अरविंदो मेडिकल कॉलेज के चेयरमैन डॉ. विनोद भंडारी, व्यापम के परीक्षा नियंत्रक डॉ. पंकज त्रिवेदी गिरफ्तार हुए। पूर्व मंत्री OP शुक्ला को नौकरी के बदले पैसे लेते रंगे हाथों दबोचा गया।
पूछताछ में खुलासे
पैसे लेकर मेडिकल-इंजीनियरिंग कॉलेजों में दाखिले करवाए जाते थे।
मंत्री, अधिकारी, कॉलेजों के प्रिंसिपल तक रैकेट से जुड़े थे। दलाल डील कराते थे।
व्यापम के ऑफिस दाखिलों और नौकरियों में फर्जीवाड़ा का अड्डा था।
परीक्षा नियंत्रक डॉ. पंकज त्रिवेदी को लक्ष्मीकांत शर्मा आवेदकों की लिस्ट और रोल नंबर देते थे।
अलग-अलग तरीकों से एग्जाम और भर्ती में फर्जीवाड़ा किया जाता था।
परीक्षार्थी को फर्जी परीक्षार्थी के पास नकल करने के लिए बैठा दिया जाता था।
ओरिजिनल परीक्षार्थी की जगह फर्जी परीक्षार्थी को एग्जाम दिलाया जाता था।
परीक्षार्थी आंसर शीट खाली छोड़ता था, जिसे बाद में भरवाया जाता था।
अकसर भर्तियों के रिजल्ट जारी करते समय अंकों को बढ़ा दिया जाता था।