गरियाबंद, 3 जुलाई। Baijnath Dham Yatra : सावन का महीना शुरू होते ही श्रद्धालुओं ने शिवालय में आराधना शुरू कर दी है। गरियाबंद के बोलबम मित्र मंडली 900 किमी दूर झारखंड राज्य के विश्वप्रसिद्ध देवघर स्थित बाबाधाम यात्रा पर है। गरियाबंद के 12 सदस्यों की टोली जिसमें वरिष्ठ भाजपा नेता आशीष शर्मा, गरियाबंद के युवा अधिवक्ता प्रशांत माणिकपूरी परमेश्वर सिन्हा अभिषेक डड़सेना, पत्रकार गोरेलाल सिन्हा, जीवन एस साहू रितेश यादव, परस देवांगन, सुमित पारख, अतुल गुप्ता, लोकेश सिन्हा, धीरज सोनी, 30 जून शुक्रवार से बाबाधाम मनोकामना बैद्यनाथ ज्योतर्लिंग में जलाभिषेक एवं पूजा अर्चना करने यात्रा पर है।
विश्वकल्याण के लिए श्रद्धालुओं की इस टोली ने सावन के प्रथम दिन पांच किमी दूर लाइन में खड़ा होकर बाबा बैद्यनाथ ज्योतर्लिंग में पूजा अर्चना कर जलाभिषेक किया।
बाबा बैद्यनाथ मनोकामना ज्योतिर्लिंग धाम में प्रतिवर्ष देश-विदेश से लाखों की संख्या में शिवभक्त अपनी मनोकामना की पूर्ति के लिए जलाभिषेक करने पहुंचते हैं। इसी तारतम्य में छत्तीसगढ़ राज्य के गरियाबंद जिले से बोल बम मित्र मंडली के 12 सदस्यों ने भी बाबा धाम पहुंचकर जलाभिषेक किया। इस दौरान उन्होंने प्रदेश की सुख, शांति और समृद्धि की भी कामना की। गरियाबंद के वरिष्ठ भाजपा नेता आशीष शर्मा से चर्चा करने पर बताया कि पौराणिक मान्यता के मुताबिक बाबा बैद्यनाथ का एक नाम रावणेश्वर महादेव के नाम से जाना जाता है।
त्रेतायुग में घटित हुए घटनाक्रम की यहां अवशेष देखने को मिलता है। विश्व का सबसे बड़ा मेला सावन माह में बैजनाथ धाम एवं बासुकीनाथ में लगता है। वासुकी नाथ भगवान के दर्शन के बिना बैद्यनाथ धाम अधूरा माना जाता है जिसके चलते यहां आने वाले श्रद्धालु वासुकी नाथ के दर्शन करने पहुंचते हैं।
गरियाबंद के युवा अधिवक्ता प्रशांत माणिकपूरी ने बताया कि कथा अनुसार लंकापति रावण ने भगवान शंकर महादेव की घोर तपस्या कर भगवान शिव को प्रसन्न किया। जिसके बाद उन्होंने वरदान मांगा जिसमें भगवान शिव को लंका जाने के लिए वर मांगा।भगवान शिव ने तथास्तु कहते हुए अपने प्रतीक स्वरूप शिवलिंग को रावण को वर प्रदान किया और उन्हें यह भी कहा इसे लंका ले जाने तक कहीं भी जमीन पर नहीं रखना वरना यह शिवलिंग उसी स्थान पर शिवलिंग स्थापित हो जाएगा।
देवलोक में हाहाकार मच गया, जिसके बाद सभी ने मिलकर एक युक्ति अपनाई और सूर्य देव ने अपना तेज प्रताप बढ़ाया जिसके बाद रावण को प्यास लगी और गंगा मैया रावण की प्यास बुझाने गले मे उतर आई। देवताओं की योजनाओं को मुताबिक रावण को जोरों से पेशाब लगी। ग्वाले के भेष पर खड़े भगवान श्री गणेश को शिवलिंग सौंप पेशाब करने लगे। बहुत देर तक रावण के नहीं आने पर ग्वाले ने शिवलिंग को जमीन पर रख दिया। जिसके बाद से शिवलिंग हमेशा के लिए स्थापित हो गए।
रावण ने उठाने के लिए बहुत ही यत्न-प्रयत्न किया लेकिन शिवलिंग तस से मस नहीं हुआ, जिससे रावण ने अपने अंगूठे से शिवलिंग को जमीन पर दबा दिया। अंगूठे के निशान आज भी शिवलिंग में उभरकर दिख रहा है। जिसके बाद देशभर में रावणेश्वर बाबा बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग के नाम से विख्यात हो गए। बाबा बैद्यनाथ के दर्शन के लिए लोग बारो माह यहां पहुंचते हैं, सावन माह में यहां की भव्यता देखते (Baijnath Dham Yatra) ही बनती है।