नई दिल्ली, 16 दिसंबर। Delhi Nirbhaya Incident : सफदरजंग अस्पताल का आईसीयू, एक बड़ा बिस्तर और सिराना ऊपर करके लेटी निर्भया। मशीनों से घिरा उसका बिस्तर और दोनों छोर पर डटे थे डॉक्टर। मशीनों से आती टू…टू…की आवाजें कभी कमरे में पसरे सन्नाटे का एहसास करातीं, तो कभी निर्भया की चीखें उसकी बर्बरता का। चीखों को सुन अच्छा खासा इंसान तक हिल जाता, फिर डॉक्टर क्या चीज थे? हुआ भी यही। निर्भया की पीड़ा ऐसी थी कि सफदरजंग की डॉक्टर सहन न कर सकीं और बाहर दौड़ गईं। अस्पताल के बाहर मीडिया का जमावड़ा था और आईसीयू के बाहर निर्भया की मां के करुण स्वर। ये दिन था सोमवार, तारीख 17 दिसंबर 2012 और वक्त शाम 6.30 बजे के आसपास।
निर्भया के अंतिम 10 दिन
निर्भया के अंतिम 10 दिन की ये बातें एम्स के पूर्व निदेशक डॉ. एमसी मिश्रा ने सुनाईं, जिन्हें 17 से 26 दिसंबर, 2012 तक का एक-एक मिनट अब भी याद है। उन्होंने बताया कि इतने दर्द के बाद भी वह जीना चाहती थी। अपने आंखों के सामने दरिंदों को सजा दिलाना चाहती थी। जीने के प्रति उसकी इच्छाशक्ति जबरदस्त थी। वह अपनी पीड़ा के बाद भी मुस्कुरा कर जवाब देती थी, मैं उस बच्ची के जज्बे को सलाम करता हूं। सात साल में पहली बार डॉ. मिश्रा ने निर्भया को सिंगापुर भेजे जाने के पीछे बड़ी वजह स्मॉल बॉल ट्रांसप्लांट बताया, जिसका भारत में कोई सेंटर ही नहीं था।
उस समय डॉ. मिश्रा दिल्ली एम्स के ट्रॉमा सेंटर के प्रमुख हुआ करते थे। एक विशेषज्ञ होने के चलते वे निर्भया के इलाज पर विशेष निगरानी के लिए तैनात किए थे। उन्होंने बताया कि दांतों से उसके चेहरे पर काटने के निशान, तो छाती और गला नाखून से जख्मी थे। पेट पर नुकीली धातु की चोट और शरीर के अंदर छोटी आंत डेमेज थी।
संक्रमण ज्यादा था, इसलिए 15 इंच लंबी छोटी आंत को निकालना पड़ गया। बड़ी आंत का करीब करीब आधा भाग डेमेज था। फिर भी वह डटी थी, जिंदगी जीने के लिए…। निर्भया के शरीर में आंत नहीं थी। संक्रमण भी बहुत था। किडनी और लिवर की कार्यशैली ठीक थी लेकिन भारत में तब आंत का प्रत्यारोपण करने के लिए कोई सेंटर ही नहीं था, इसलिए निर्भया को सिंगापुर में स्मॉल बॉल ट्रांसप्लांट के लिए भेजा था।
26 दिसंबर, 2012 को बुधवार था और तब निर्भया को सिंगापुर ले जाने के लिए पांच डॉक्टरों को मेदांता अस्पताल की एंबुलेंस में एयरपोर्ट तक भेजा, उस वक्त बुखार 103 था और प्लेटलेट्स करीब 80 हजार, डब्ल्यूबीसी काउंट 5600 था। किडनी सही काम कर रही थी, इसलिए यूरीन की दिक्कत नहीं थी, लेकिन पीलिया 7.7 था, जोकि गंभीर था।
जीवट थी निर्भया…पानी भी नहीं दे सके
निर्भया जीवट थी। 24 दिसंबर की दोपहर 2 बजे से उसकी तबीयत बिगड़ने लगी थी। उसे पानी देना भी बंद कर दिया था। वह प्यासी थी, लेकिन हमारे पास चम्मच से एक या दो बूंद देने के अलावा कोई विकल्प न था। उसके शरीर में अंदर ही अंदर रक्तस्त्राव हो रहा था, इसलिए कुछ भी नियंत्रण से बाहर था। ये कहना है सफदरजंग अस्पताल के तत्कालीन वरिष्ठ अधिकारी का। वे कहते हैं कि ऑपरेशन से आंत के बाकी हिस्से को निकाला। ऑपरेशन के बाद वह आईसीयू में थी। इसके बाद अगले दो दिन वह ठीक थी, लेकिन धीरे-धीरे संक्रमण बढ़ने लगा था।
चीखें आज भी कई बार सुनाई देती हैं
एक वरिष्ठ नर्स बताती हैं कि वे कभी निर्भया के बारे में किसी से बात नहीं करती हैं। वो चीखें आज भी उन्हें कई बार सुनाई देती हैं। निर्भया के पास पासपोर्ट नहीं था और उसे बाहर जाना था, तब मैंने ही आईसीयू में उसका फोटो खींचा और पासपोर्ट बनवाने के लिए दिया। हर कोई पासपोर्ट पर अपनी अच्छी फोटो लगवाता है, लेकिन उसके पासपोर्ट पर पट्टियां और दांतों से कटा चेहरा था।
आज भी थाने के सामने खड़ी मनहूस बस
दक्षिण-पश्चिमी जिले के सागरपुर थाने के सामने पिट में खड़ी वसंत विहार की दर्दनाक वारदात में इस्तेमाल की गई बस नंबर 0149 आज भी पुलिस अधिकारी, कर्मी, पीड़िता से जुड़े लोग और स्थानीय लोगों को दर्दनाक जख्म को कुरेद रही है। दिल्ली पुलिस की भारी लापरवाही के चलते ऐसा हो रहा है। निर्भया कांड केस खत्म होने व दोषियों को सजा होने के बावजूद से बस पिट में खड़ी है। केस से जुड़े किसी पुलिस अधिकारी व पुलिसकर्मी व अन्य अधिकारियों को याद नहीं आया कि केस खत्म होने के बाद वाहन, ड्रग्स व शराब आदि चीजों को नष्ट कर दिया जाता है।
12 साल पहले यानि 16 दिसंबर 2012 की रात राजधानी दिल्ली की सड़कें जिस दरिंदगी की गवाह बनी थीं, उससे पूरा देश दहल गया था। क्या बच्चे, क्या बूढ़े, देश के हर नागरिक की आंखों में अंगारे भड़क रहे थे और सब लोग न्याय की लड़ाई के लिए सड़क पर उतर आए थे। यादव ट्रैवल्स की नंबर 0149 वही बस है, जिसमें वसंत विहार सामूहिक दुष्कर्म की वारदात को अंजाम दिया गया था। इस बस को देखकर दिल्ली पुलिस से लेकर आसपास रहने वाले लोग आज भी गुस्से से बौखला उठते हैं। मगर बस को खत्म करने वाली प्रक्रिया को अभी तक पूरा नहीं किया गया है। यहीं वजह है कि अब भी बस सागरपुरी थाने के सामने खड़ी है।
केस प्रॉपर्टी को खत्म करने के नियम
केस प्रॉपर्टी को खत्म करने का ये है नियम
दिल्ली पुलिस के अधिकारियों के अनुसार अगर केस खत्म होने के 90 दिन के भीतर बस मालिक अपील नहीं करता है तो फिर पुलिस की जिम्मेदारी हो जाती है। जिस जिले में वारदात हुई है उसे जिले का पुलिस नाजिर डिस्पोजल करवाता है। या तो बस को ऑक्शन किया जाता है या फिर प्रॉपर्टी के खराब हालत में होने पर कोर्ट से आदेश लेकर नष्ट कर दिया जाता है। इसमें नए कानून आने से बहुत पहले गाइडलाइन तैयार की गई थी।
इस केस की जांच में शामिल रहे पुलिसकर्मियों का कहना है कि जब वह इस बस को देखते हैं तो रोंगटे खड़े हो जाते हैं और गुस्सा आ जाता है। घटना के बाद इस बस को सागरपुर स्थित पिट में छिपाकर रखा हुआ है। वारदात से लेकर करीब दो वर्ष पहले तक इस बस को त्यागराज स्टेडियम, वसंत विहार समेत कई जगहों पर छिपाकर रखा हुआ था। बस अब खटारा हालत में है। उसमें लगे पर्दे फट चुके हैं। अंदर की स्थिति भी खराब हो चुकी है। और यह लोहे के ढ़ांचे में तब्दील हो चुकी है।
ऐसे हुई थी हैवानियत
निर्भया कांड की जांच के लिए बनी एसआईटी के सदस्य रहे और इस समय एसीपी द्वारका राजेंद्र सिंह ने बताया कि इस बस के मालिक दिनेश यादव हैं। बस सुबह व शाम के समय नोएडा सवारी लेकर जाती थी। इसके अलावा बिड़ला विद्या निकेतन स्कूल में लगी हुई थी। आरके पुरम के सेक्टर-तीन स्थित रविदास कैंप में रहने वाला राम सिंह इस बस का ड्राइवर था। वारदात वाले दिन चालक अन्य आरोपियों को लेकर मुनिरका बस स्टैंड पर पहुंच गया। पीड़ित युवक व निर्भया इस बस में द्वारका जाने के लिए बैठ गए। इसके बाद आरोपियों ने चलती बस में पीड़िता के साथ सामूहिक दुष्कर्म किया। इसके बाद पीड़ित लड़का व लड़की को एनएच-8 पर फेंक दिया था। आरोपियों ने पीड़ितों पर बस का पहिया चढ़ाने की कोशिश की थी।
निर्भया केस की जांच के लिए बनी एसआईटी के प्रमुख व अब दिल्ली पुलिस से रिटायर हो चुके एसीपी राजेंद्र सिंह ने बताया कि हालांकि एक पुलिसकर्मी के लिए ये बस इस सफलता को बताती है कि वह दरिंदों को सजा दिलाने में कामयाब रहे।
ये थे वे खौफनाक दिन
17 दिसंबर 2012 : जख्मी हालत में सफदरजंग अस्पताल पहुंची निर्भया।
18 दिसंबर 2012: निर्भया का ऑपरेशन हुआ, हालत स्थिर।
19 दिसंबर 2012 : एक और ऑपरेशन हुआ और छोटी आंत को बाहर निकाल दिया।
20 दिसंबर 2012: हालत स्थिर, प्लेटलेट्स सात हजार गिरीं।
21 दिसंबर 2012: बोली निर्भया-मां, मांगा पानी।
22 दिसंबर 2012 : पीलिया चढ़ा, चार बूंद पिया जूस, एम्स की टीम ने संभाली कमान।
23 दिसंबर 2012 : निर्भया वेंटिलेटर पर, तीसरा ऑपरेशन किया।
24 दिसंबर 2012 : शरीर के अंदर शुरू हुआ रक्तस्राव, बढ़ी तकलीफ।
25 दिसंबर 2012: पीलिया नहीं हुआ नियंत्रण में, आंत का प्रत्यारोपण था जरूरी।
26 दिसंबर 2012 : निर्भया सिंगापुर के लिए रवाना।
27 दिसंबर 2012 : सिंगापुर के माउंट एलिजाबेथ अस्पताल में भर्ती, हालत नाजुक।
28 दिसंबर 2012 : कई अंगों ने काम बंद कर दिया।
29 दिसंबर 2012 : रात 2.15 बजे ली आखिरी सांस।