Indus Deal Suspended: India's 'water strike'...! How much will the breaking of the Indus treaty affect Pakistan...? Understand in detail hereIndus Deal Suspended
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नई दिल्ली, 25 अप्रैल। Indus Deal Suspended : कश्मीर के पहलगाम में हाल ही में हुए घातक आतंकी हमले के बाद भारत सरकार ने एक बड़ा कदम उठाते हुए 1960 की सिंधु जल संधि (Indus Waters Treaty) को अस्थायी रूप से निलंबित करने का ऐलान किया है। इस फैसले ने दक्षिण एशिया में जल कूटनीति और भारत-पाकिस्तान संबंधों में एक बार फिर गर्माहट ला दी है।

सिंधु जल संधि को समझे

1960 में विश्व बैंक की मध्यस्थता में भारत और पाकिस्तान के बीच यह ऐतिहासिक संधि हुई थी। इसका उद्देश्य सिंधु बेसिन की छह प्रमुख नदियों – सिंधु, झेलम, चिनाब, रावी, ब्यास और सतलुज – के जल का न्यायसंगत और शांतिपूर्ण बंटवारा करना था।

पश्चिमी नदियां- सिंधु, झेलम और चिनाब- पाकिस्तान को आवंटित की गईं।

पूर्वी नदियां- रावी, ब्यास और सतलुज- भारत को आवंटित की गईं।

इस समझौते के तहत, हालांकि पाकिस्तान को पश्चिमी नदियों पर अधिकार मिला, भारत को इन नदियों पर “गैर-खपत उपयोग” जैसे कि सिंचाई, विद्युत उत्पादन और नौवहन के लिए सीमित अधिकार दिए गए हैं।

भारत के लिए विकल्प

भारत संधि के तहत अपनी पूर्वी नदियों का पूरा उपयोग करने का अधिकार रखता है, लेकिन अब तक वह इसका पूरी तरह से दोहन नहीं कर पाया है। संधि के निलंबन के बाद भारत:

पश्चिमी नदियों पर अधिक जल संरचनाएं (जैसे डैम और बैराज) बना सकता है।

पाकिस्तान को जाने वाले पानी की मात्रा को सीमित कर सकता है, खासकर झेलम और चिनाब पर।

कूटनीतिक दबाव के रूप में इस जल संसाधन को एक “लीवर” की तरह इस्तेमाल कर सकता है।

यह है बड़ा लाभार्थी

पिछले कई दशकों से यह माना जाता रहा है कि सिंधु जल संधि पाकिस्तान के लिए अधिक फायदेमंद रही है। भारत ने इस संधि का हमेशा पालन किया, यहां तक कि 1965, 1971 और 1999 के युद्धों के दौरान भी इस समझौते को बरकरार रखा गया।

पाकिस्तान की 90% से अधिक सिंचाई कृषि प्रणाली सिंधु और इसकी सहायक नदियों पर निर्भर है। ऐसे में इस समझौते का निलंबन पाकिस्तान की आर्थिक और खाद्य सुरक्षा के लिए बड़ा झटका साबित हो सकता है।

भारत के फैसले के पीछे की मंशा

पिछले कुछ वर्षों में भारत ने संकेत दिए थे कि वह “जल को हथियार” के रूप में इस्तेमाल नहीं करना चाहता, लेकिन लगातार आतंकी हमलों और सीमा पार से उकसावे की कार्रवाई के चलते नीति में यह बदलाव आया है। यह निलंबन एक सख्त संदेश है कि आतंकवाद को बढ़ावा देने की कीमत चुकानी होगी।

क्या यह कानूनी रूप से मुमकिन है?

हालांकि सिंधु जल संधि को एक स्थायी समझौता माना जाता है, लेकिन इसमें विवाद निपटान की प्रक्रियाएं, तकनीकी निरीक्षण, और समीक्षा के प्रावधान शामिल हैं। भारत यदि यह साबित करता है कि पाकिस्तान इस संधि की मूल भावना का उल्लंघन कर रहा है (जैसे आतंकवाद को समर्थन देकर द्विपक्षीय संबंधों को नुकसान पहुँचाना), तो वह अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी अपना पक्ष मजबूत बना सकता है।

भारत के पास अब क्या विकल्प हैं?

जल संरचनाओं का निर्माण- भारत अब पश्चिमी नदियों पर अधिक डैम और बैराज बना सकता है।

जल प्रवाह नियंत्रण- झेलम और चिनाब से पाकिस्तान को मिलने वाला जल कम किया जा सकता है।

कूटनीतिक दबाव- इस संधि को ‘कूटनीतिक हथियार’ की तरह इस्तेमाल किया जा सकता है।

पाकिस्तान के लिए झटका क्यों?

90% से अधिक सिंचाई तंत्र सिंधु प्रणाली पर निर्भर

खाद्य सुरक्षा, कृषि और पीने के पानी पर पड़ सकता है सीधा प्रभाव

जल संकट का सामना कर रही अर्थव्यवस्था को बड़ा झटका संभव

क्या कहते हैं विशेषज्ञ?

प्रो. आर.के. शर्मा, अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकार- “भारत अब तक इस संधि को नैतिक और वैधानिक दृष्टिकोण से निभाता रहा, लेकिन समय आ गया है कि इसका रणनीतिक उपयोग हो।”

डॉ. सायरा इकबाल, जल नीति विशेषज्ञ- “पाकिस्तान के लिए यह केवल एक जल संकट नहीं, बल्कि एक रणनीतिक चेतावनी है।”

भारत द्वारा सिंधु जल संधि का (Indus Deal Suspended) निलंबन सिर्फ एक कूटनीतिक प्रतिक्रिया नहीं, बल्कि एक रणनीतिक चेतावनी है। यह न सिर्फ पाकिस्तान की जल सुरक्षा पर असर डाल सकता है, बल्कि दोनों देशों के बीच जल कूटनीति के नए अध्याय की शुरुआत भी कर सकता है।