नई दिल्ली, 07 फरवरी। Parliament : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुरुवार को संसद में इमरजेंसी के दौरान फिल्म इंडस्ट्री और कलाकारों की ‘फ्रीडम ऑफ स्पीच’ कुचलने के बारे में बात की। बजट सत्र के पांचवें दिन की कार्यवाही के दौरान पीएम मोदी धन्यवाद प्रताव पर चर्चा का जवाब दे रहे थे। अपने भाषण में उन्होंने कांग्रेस सरकारों के दौरान, देश में ‘फ्रीडम ऑफ स्पीच कुचलने’ पर बात की. प्रधानमंत्री ने उन घटनाओं का जिक्र किया जब कांग्रेस सरकार के दौरान फिल्म इंडस्ट्री के कलाकारों पर लगाम लगाने की कोशिशें की जा रही थीं। उन्होंने मजरूह सुल्तानपुरी, देव आनंद और बलराज साहनी जैसे कलाकारों के साथ हुई घटनाओं का जिक्र किया।
ये पहली बार नहीं है जब प्रधानमंत्री मोदी ने इन घटनाओं का जिक्र किया है। 2022 में भी उन्होंने संविधान और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मुद्दे पर चर्चा के दौरान इन घटनाओं का जिक्र किया था।
प्रधानमंत्री मोदी ने कहा
पीएम मोदी ने कांग्रेस पर आजादी के बाद तुरंत बाद ‘संविधान की भावनाओं की धज्जियां उड़ाने’ का आरोप लगाया। उन्होंने कहा, ‘नेहरू जी प्रधानमंत्री थे, पहली सरकार थी और मुंबई में मजदूरों की एक हड़ताल हुई। उसमें मजरूह सुल्तानपुरी ने एक कविता गाई थी- कॉमनवेल्थ का दास है। इसके जुर्म में नेहरू जी ने उन्हें जेल भेज दिया। बलराज साहनी एक जुलूस में शामिल हुए थे, उन्हें जेल में बंद कर दिया गया था। लता मंगेशकर के भाई हृदयनाथ मंगेशकर ने वीर सावरकर पर एक कविता आकाशवाणी पर प्रसारित करने की योजना बनाई, उन्हें आकाशवाणी से बाहर कर दिया गया। देश ने इमरजेंसी का दौर भी देखा है। देवानंद ने इमरजेंसी को सपोर्ट नहीं किया तो उनकी फिल्में बैन करा दीं।’
मजरूह सुल्तानपुरी की गिरफ्तारी का कारण
![](https://i0.wp.com/ekjantakiawaaz.com/wp-content/uploads/2025/02/image-26.png?resize=640%2C933&ssl=1)
अपने दौर के नामी गीतकारों में से एक मजरूह सुल्तानपुरी (Parliament) भारत में ब्रिटिश राज के खिलाफ लिखा करते थे और ‘प्रोग्रेसिव राइटर्स मूवमेंट’ का हिस्सा थे। इस मूवमेंट से जुड़े कलाकार सोशलिस्ट और कम्युनिस्ट विचारधारा को सपोर्ट करते थे और उनके काम में भी उनके राजनीतिक विचारों का असर दिखता था।
‘मजरूह सुल्तानपुरी’ किताब में लेखक मानक प्रेमचंद ने उस पूरी घटना का जिक्र किया है जब मजरूह को अरेस्ट किया गया था। 1949 में, मुंबई के एक मजदूर आंदोलन के दौरान मजरूह ने एक कविता पढ़ी थी, जिसका एक हिस्सा प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के विरोध में था क्योंकि उन्होंने भारत को ‘कॉमनवेल्थ ऑफ नेशन्स’ की लिस्ट में शामिल किए जाने का फैसला लिया था।
उस कविता की कुछ लाइनें थीं
‘अमन का झंडा इस धरती पे, किसने कहा लहरा ना पाए
ये भी कोई हिटलर का है चेला, मार ले साथी, जाने ना पाए!
कॉमनवेल्थ का दास है नेहरू , मार ले साथी, जाने ना पाए!’
राज्य सरकार ने मजरूह के खिलाफ एक अरेस्ट वारंट जारी कर दिया था। लेकिन मजरूह अंडरग्राउंड हो गए और उन्हें 1951 में ही गिरफ्तार किया जा सका। उनकी गिरफ्तारी के बाद तब बॉम्बे (अब मुंबई) के गृह मंत्री रहे मोरारजी देसाई ने उनसे माफी मांगने को कहा ताकि उन्हें छोड़ा जा सके। लेकिन मजरूह ने ऐसा करने से इनकार कर दिया था। हालांकि, किताब में इस बात को भी ‘दिलचस्प’ बताया गया कि जहां एक कांग्रेस सरकार ने नेहरू के खिलाफ बोलने के लिए मजरूह को अरेस्ट कर लिया था, वहीं 1993 में एक कांग्रेस सरकार ने ही उन्हें देश का सबसे बड़ा फिल्म सम्मान, दादासाहेब फाल्के अवॉर्ड भी दिया।
बलराज साहनी के साथ ये हुआ
![](https://i0.wp.com/ekjantakiawaaz.com/wp-content/uploads/2025/02/image-25.png?resize=640%2C579&ssl=1)
इसी किताब में हिंदी फिल्म लेजेंड्स में गिने जाने वाले बलराज साहनी की गिरफ्तारी का भी जिक्र है। किताब में बताया गया है कि कथित तौर पर, बलराज के अरेस्ट ऑर्डर में उनपर ‘कम्युनिस्ट पार्टी के एक प्रदर्शन के दौरान हिंसा भड़काने’ का आरोप लगाया गया था।
बलराज साहनी को 6 महीने के लिए जेल में रखा गया। उन्होंने जेल से बाहर आने के बाद लिखा कि बाहर आने के बाद भारतीय थिएटर-आर्टिस्ट्स की सबसे पुरानी संस्था IPTA (इंडियन पीपल्स थिएटर एसोसिएशन) ने ‘त्याग’ दिया था। उन्होंने लिखा, ‘मेरा जीवन बिन पतवार की नाव बन गया था। जैसे कि इतना कुछ काफी नहीं था, मुझे पुलिस की धमकियां भी झेलनी पड़ रही थीं। वो मुझे अपना गुप्तचर भी बनाना चाहते थे।’
इमरजेंसी में देव आनंद के साथ जो हुआ
![](https://i0.wp.com/ekjantakiawaaz.com/wp-content/uploads/2025/02/image-23.png?resize=640%2C840&ssl=1)
हिंदी फिल्मों के आइकॉन देव आनंद ने अपनी किताब ‘रोमांसिंग विद लाइफ’ में लिखा है कि वो दिलीप कुमार के साथ एक सरकारी कार्यक्रम के लिए दिल्ली पहुंचे थे। यहां पहुंचकर उन्हें एहसास हुआ कि ये कार्यक्रम ‘संजय गांधी की छवि को बढ़ावा देने के लिए’ आयोजित किया गया है, जिन्हें तब ‘देश का नेता’ कहकर प्रचारित किया जा रहा था। फिल्म शख्सियतों को बुलाए जाने का मकसद ये था कि वो इन चीजों की प्रशंसा करें, लेकिन देव आनंद ने ऐसा करने से इनकार कर दिया।
पूरी घटना याद करते हुए देव ने अपनी किताब में लिखा, ‘दिलीप को भी इमरजेंसी के पक्ष में किसी प्रोपेगेंडा में शामिल होने के लिए टीवी सेंटर जाने में हिचकिचाहट हुई, मैंने इसका जोरदार और सीधा विरोध किया।’ नतीजा वही हुआ जिसकी उम्मीद उस दौर में कोई भी कर सकता था। देव ने किताब में आगे लिखा, ‘ना सिर्फ टीवी पर मेरी सभी फिल्मों की स्क्रीनिंग पर बैन लगा दिया गया, बल्कि किसी ऑफिशियल मीडिया में मेरा नाम लिया जाना या उसका जिक्र भी वर्जित था।’ देव आनंद ने लिखा कि जब उन्होंने मंत्री वी. सी. शुक्ला से इस बारे में बात की तो उन्हें सरकार के पक्ष में बोलने को कहा गया।
जब इमरजेंसी खत्म हुई तो देव आनंद ने जनता पार्टी के सरकार बनाने का समर्थन किया। लेकिन जब ये सरकार अपने वादे पूरे करने में नाकाम रही तो देव ने अपनी खुद की पार्टी, नेशनल पार्टी, की शुरुआत की। हालांकि, कुछ महीने बाद ये पार्टी खत्म कर दी गई।
लता मंगेशकर के भाई के साथ भी कांड हुआ
2022 में संसद में ही एक भाषण देते हुए भारत की स्वर कोकिला, लता मंगेशकर के भाई हृदयनाथ मंगेशकर को एक कविता के लिए AIR (ऑल इंडिया रेडियो) से निकाले जाने की बात कही थी।
उन्होंने कांग्रेस सरकार पर आरोप (Parliament) लगाते हुए कहा था, ‘हृदयनाथ मंगेशकर जी ने एक इंटरव्यू में कहा था कि एक बार वो सावरकर से मिले थे और उन्हें अपनी कविता पेश करने के बारे में बताया था। सावरकर जी ने उन्हें कहा- ‘मेरी कविता पढ़कर तुम जेल जाना चाहते हो क्या?’ लेकिन हृदयनाथ जी ने कविता पढ़ी और आठ दिन के अंदर AIR में उनकी सेवा समाप्त कर दी गई।
![](https://i0.wp.com/ekjantakiawaaz.com/wp-content/uploads/2025/02/image-24.png?resize=640%2C894&ssl=1)
‘