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देवास, 27 जुलाई। Stone Statue : मध्य प्रदेश के देवास जिले के ‘हाटपिलिया’ नामक गांव में भगवान विष्णु के चौथे अवतार भगवान श्री नरसिंह की पत्थर की मूर्ति वाला एक मंदिर है। जहां हर साल ‘जलझूलनी’ एकादशी पर भगवान की मूर्ति को स्नान कराने के लिए ‘भमोरी’ नामक नदी पर ले जाया जाता है।जिसमें सभी श्रद्धापूर्वक पूजा-अर्चना के बाद साढ़े सात किलो की इस पत्थर की मूर्ति को पुजारी द्वारा स्नान के लिए पानी में छोड़ दिया जाता है।

पत्थर की शिला विपरीत दिशा में बहती

आश्चर्यजनक रूप से श्री हरि प्रभुजी के अवतार श्री नरसिंहजी भगवान् की यह मूर्ति बिना डूबे पानी की विपरीत दिशा में बहकर सीधे पुजारी के पास वापिस आ जाती है। यह केवल एक बार ही नहीं अपितु बारंबार इस अद्भुत नजारे को देखने को मिलता है। यहीं कारण है कि, इस अद्भुत नजारे को दीदार करने देशभर से हजारों श्रद्धालु यहां आते हैं।

यहां हर साल डोलग्यासर पर नृसिंह भगवान की प्रतिमा को नदी में तीन बार तैराया जाता है। लोगों का दावा है की प्रतिमा नदी के बहाव की उल्टी दिशा में तैरती है। दरअसल, प्रतिमा तैराने के पीछे एक मान्यता है, जिसके अनुसार भगवान की प्रतिमा को तीन बार तैराने से आने वाले साल की खुशहाली का अंदाजा लगाया जाता है।

पाषाण प्रतिमा का इतिहास

बुजुर्गों के बताए अनुसार नृसिंह भगवान की इस पाषाण प्रतिमा का इतिहास करीब 115 साल पुराना है। साल 1902 से हर वर्ष भादौ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को यानी डोल ग्यारस के दिन नृसिंह भगवान की प्रतिमा तैराई जाने की परंपरा है। कहा जाता है की प्रतिमा की प्रतिष्ठा बागली रियासत के पंडित बिहारीदास वैष्णव ने नृसिंह पर्वत की चारो धाम की तीर्थ यात्रा करवाने के बाद पीपल्या गढ़ी में करवाई थी।

भमोरी नदी में पंड़ितों के स्नान के बाद नदी की पूजा की जाती है। उसके बाद पंडित द्वारा दीपक जलाकर नदी में छोड़ा जाता है और मंत्रोच्चार के साथ तीन बार प्रतिमा को तैराया जाता है। हर साल प्रतिमा पानी में तैरती है और तीनों बार कामयाबी मिलती है। हाटपिपल्या में हर साल होने वाले इस परंपरा को देखने के लिए लाखों की संख्या में श्रद्धालु भमोरी नदी के घाट पर जुटते हैं।

पंडित पूजा करने के बाद पानी में साढ़े साल किलो की पाषाण प्रतिमा को नदी में बहा देते हैं जिसके बाद प्रतिमा बिना डूबे बहते हुए पानी में धारा के विरुद्ध दिशा में सीधे पंडित के पास आती है। यह द्श्य देखने के लिए देश भर से हजारों की संख्या में सनातनी आते हैं।

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