नई दिल्ली, 31 जुलाई। Wayanad Landslides : जहां सैलानी घूमने आते थे। वहां मौत घूम गई। ये आपदा आती नहीं, अगर जलवायु न बदलते हम। वायनाड में भूस्खलन के बाद मुंडाक्काई गांव का चौराहा और चूरालमाला गांव तो भूतिया कस्बे में बदल गए हैं।
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इमारतें ढह गई हैं। सड़कों पर गलियों में बड़े पत्थर और कीचड़ भरा पड़ा है। हरी-भरी पहाड़ियों, जिस पर चाय के बागान और खूबसूरत जंगल हैं। उन्हीं पहाड़ियों से मौत लुढ़कती हुई नीचे आई। अपने घरों, होटलों में सो रहे लोगों को मौत की नींद सुला गई।
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चूरालमाला अपनी खूबसूरती और झरनों के लिए जाना जाता है। जैसे- सूचिप्पारा झरना, वेलोलीपारा झरना, सीता लेक आदि. लेकिन अब यह किसी कब्रिस्तान से कम नहीं दिख रहा।
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इस समय मुंडाक्काई और चूरालमाला गांव पूरी तरह खत्म हो चुके हैं। जैसे केदारनाथ में रामबाड़ा पूरी तरह से साफ हो गया था। कई जगहों पर कारें और अन्य गाड़ियां कीचड़ और बोल्डर्स के बीच फंसी दिख रही हैं।
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लोग पागलों की तरह अपने लोगों को खोजने के लिए मलबे हटा रहे हैं। एनडीआरएफ, एसडीआरएफ, सेना समेत कई स्थानीय एजेंसियों के बचावकर्मी लोगों को खोजने और राहतकार्य में लगे हुए हैं। कीचड़ के बीच जिन तीन लोगों की फोटो दिख रही है, उनके घर में कोई नहीं मिला। आपदा पीछे की दीवार तोड़कर आई थी।
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मुंडाक्काई के बुजुर्ग ने कहा कि हमने सबकुछ और हर व्यक्ति को खो दिया है। यहां पर अब हमारे लिए कुछ भी नहीं बचा है।मेरा तो पूरा परिवार लापता है। खोज रहा हूं। कोई कहीं नहीं मिल रहा है।
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कई लोग तो यहां तक कह रहे हैं कि हम अभी जिस जमीन पर चल रहे हैं, उसके नीचे हमारे ही लोग दबे हुए हैं। क्या पता कहां होंगे। मुंडाक्काई में तो कुछ बचा ही नहीं। सिर्फ कीचड़ और बोल्डर पड़े हैं।
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तबाही से पहले मुंडाक्काई गांव में करीब 450-500 मकान थे। लेकिन अब सिर्फ 34 से 49 घर ही बचे हैं। तेज बारिश की वजह से भयानक भूस्खलन हुआ। जिससे मुंडाक्काई, चूरालमाला, अट्टामाला और नूलपुझा गांव प्रभावित हुए। सैकड़ों लोग मारे गए।
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अब तक 158 लोग मारे जा चुके हैं। 186 से ज्यादा लोग जख्मी हैं. आशंका है कि अब भी मलबे के नीचे सैकड़ों लोग दबे मिल सकते हैं। वायनाड उत्तरी केरल का पहाड़ी वाला जिला है। यहां जंगल हैं। तीखे ढलान वाली पहाड़ियों और पठार हैं। चमकते हुए झरने हैं।
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अरब सागर की लगातार बढ़ती गर्मी। उसके ऊपर जमा बादलों का झुंड। इसकी वजह से केरल में तबाही आई। अगला एक हफ्ता अब भी खतरनाक ही बताया जा रहा है। अगले 2-3 दिनों तक केरल के निचले इलाकों में ताकतवर हवाएं चलेंगी।
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30 जुलाई से 2 अगस्त तक केरल के कई इलाकों में तेज बारिश, थंडरस्टार्म आ सकता है। इसमें वायनाड भी शामिल है। मौसम विभाग ने स्पष्ट तौर पर कहा था कि 30 से 31 जुलाई को तेज और बहुत तेज बारिश होगी। पहले 24 घंटे में 7 से 11 सेंटीमीटर और दूसरे दिन 12 से 20 सेंटीमीटर बारिश। यानी ये चरम स्थिति है।
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अगले एक हफ्ते तक इसका प्रभाव वायनाड, इडुकी, त्रिशूर, पलक्कड़, कोझिकोड, कन्नूर और कासरगोड़ तक रहेगा। दूसरे दिन भी लगभग इन्हीं इलाकों में बारिश होने की पूरी संभावना है। वायनाड में बचावकार्य भी बारिश के बीच ही हो रही है।
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समंदर के ऊपर हवाएं 35 से 45 km/hr की गति से चल रही हैं। इसलिए मछुआरों को समंदर में न जाने की सलाह दी गई है। तेज बारिश, भूस्खलन से भारी नुकसान की चेतावनी जारी की गई थी।
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मौसम विभाग के अनुसार केरल के पास बादलों ने जमावड़ा कर रखा है। केरल के पूर्व में स्थित पश्चिमी घाट की ऊंची पहाड़ियों ने इन बादलों को फैलने या आगे जाने का रास्ता न दिया हो। जिसकी वजह से 2013 में केदारनाथ में त्रासदी आई थी। वहां भी बादल पहाड़ों में फंसे थे।
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वैज्ञानिकों ने देखा है कि केरल के पास अरब सागर में वेरी डीप क्लाउड सिस्टम डेवलप हो रहा है। यह अरब सागर का दक्षिणी हिस्सा है। ये सिस्टम समंदर में ही रहता है। लेकिन कई बार जमीन की तरफ बढ़ जाता है। जैसा साल 2019 में हुआ था। अरब सागर लगातार जलवायु परिवर्तन की वजह से गर्म हो रहा है।
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इसका असर केरल के ऊपर मौजूद वायुमंडल में हो रहा है। केरल का वायुमंडल थर्मोडायनेमिकली असंतुलित हो चुका है। इस असंतुलन की वजह से गहरे बादलों का जमावड़ा होता है। पहले इस तरह का मौसम उत्तरी कोंकण इलाके में होता था। उत्तरी मैंगलुरू के ऊपर की तरफ, लेकिन जलवायु बदलने से ये यह अब नीचे की तरफ (Wayanad Landslides) आ रहा है।
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