राजस्थान, 24 नवंबर। List of CM : क्षेत्रफल के लिहाज से राजस्थान भारत का सबसे बड़ा राज्य है, लेकिन राज्य के मुख्यमंत्रियों की फ़ेहरिस्त बड़ी नहीं है। पिछले 33 सालों में राजस्थान में केवल तीन नेता (भैरों सिंह शेखावत, अशोक गेहलोत और वसुन्धरा राजे) मुख्यमंत्री हुए हैं। 50 वर्षों की सूची देखें तो यह संख्या छह (इसमें हीरा लाल देवपुरा को नहीं गिना गया है, जिनका कार्यकाल केवल 15 दिनों का था) हो जाएगी। दिलचस्प यह भी है कि राज्य में कई बार त्रिशंकु विधानसभा के हालात बने लेकिन सरकार बनाने में हमेशा सबसे बड़ी पार्टी ही कामयाब हुई।
राजस्थान में भाजपा और कांग्रेस का ही शासन रहा, बावजूद इसके राज्य में समय-समय पर नए-नए राजनीतिक दलों का उदय हुआ। 1993 में भाजपा के भैरों सिंह शेखावत के मुख्यमंत्री के रूप में लौटने के बाद से राज्य की सत्ता हमेशा कांग्रेस और भाजपा के बीच बदलती रही है।
अब तक 3 मुख्यमंत्रियों को केंद्र कर चुकी है बर्खास्त
वर्तमान में राजस्थान में विधानसभा की 200 सीटें हैं। इनमें से 34 अनुसूचित जाति और 25 अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हैं। लोकसभा की 25 सीटें हैं, जिसमें से तीन एससी और चार एसटी के लिए आरक्षित हैं। राज्य से राज्यसभा के लिए 10 सांसद भेजे जाते हैं।
राजस्थान का राजनीतिक इतिहास बताता है कि राज्य की तीन चुनी हुई सरकारों को केंद्र सरकारों ने समय-समय पर बर्खास्त किया। पहली बार ऐसा प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई सरकार ने किया। आपातकाल के बाद बनी केंद्र सरकार का नेतृत्व करते हुए देसाई ने साल 1977 में राजस्थान की हरदेव जोशी सरकार (कांग्रेस) को बर्खास्त कर दिया था। भैरों सिंह शेखावत के साथ यह दो बार हुआ। 1980 में इंदिरा गांधी ने उन्हें पद से बर्खास्त किया और 1992 में बाबरी विध्वंस के बाद पीवी नरसिम्हा राव ने।
राज्य में तीसरी पार्टियों का जोर
राज्य में समय-समय पर तीसरी राजनीतिक ताकत का उभार होता रहा है। कई प्रभावशाली गैर-कांग्रेस, गैर-भाजपा नेता उभरे। लेकिन ये ज्यादा दिन तक छाए नहीं रहे। या तो वे राजनीति से गायब हो गए, या दो प्रमुख दलों में से किसी एक में शामिल हो गए।
सी राजगोपालाचारी की स्वतंत्र पार्टी ने 1962 में 176 सदस्यीय विधानसभा में से 36 सीटें और 1967 में 184 में से 48 सीटें जीतीं। 1990 के दशक तक, जनता दल में कल्याण सिंह कालवी, देवी सिंह भाटी और राजेंद्र सिंह राठौड़ जैसे कई महत्वपूर्ण नेता थे। राठौड़ अब विधानसभा में भाजपा के विपक्ष के नेता हैं। जगदीप धनखड़ जो जनता दल से कांग्रेस और अंत में भाजपा में गए थे, अब भारत के उपराष्ट्रपति हैं। 2018 में बहुजन समाज पार्टी (BSP) के छह विधायक थे, बाद में ये सभी कांग्रेस में शामिल हो गए।
कांग्रेस और भाजपा के बीच सीधी टक्कर
राज्य में चुनाव सीधे तौर पर कांग्रेस और भाजपा के बीच रही है। 1998 से अशोक गहलोत और वसुंधरा राजे बारी-बारी से मुख्यमंत्री बनते रहे हैं। राज्य में गहलोत अपनी पार्टी का चेहरा रहे हैं। सचिन पायलट के अलावा उनका कोई प्रतिद्वंद्वी नहीं है।
दूसरी तरफ वसुंधरा राजे हैं जो तत्कालीन उपराष्ट्रपति शेखावत और दिवंगत प्रमोद महाजन के आशीर्वाद से 2003 में पहली बार मुख्यमंत्री बनी थीं। तब से वह राज्य में भाजपा की सबसे बड़ी नेता बनी हुई हैं, भले ही उन्हें पिछले पांच वर्षों में व्यवस्थित रूप से दरकिनार कर दिया गया है।
बतौर मुख्यमंत्री सबसे लंबा कार्यकाल कांग्रेस के मोहन लाल सुखाड़िया का रहा है। वह 16 साल और 6 महीने से अधिक समय तक सेवा में रहे। इसके बाद नंबर आता है गहलोत का, जो तीन बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ले चुके हैं। दो कार्यकाल सफलतापूर्वक पूरा कर चुके हैं। तीसरा भी पूरा होने वाला है। शेखावत और वसुंधरा दोनों ने 10-10 साल से अधिक समय तक सेवा की है। पहले हरिदेव जोशी और एचएल देवपुरा क्रमशः 6 साल से अधिक और 5 साल से अधिक समय तक सीएम रहे थे। सुखाड़िया, गहलोत, शेखावत और वसुंधरा ने मिलकर 51 साल से अधिक समय तक राज्य पर शासन किया है।
यहां नहीं बना जाट जाति से कोई CM
गहलोत ओबीसी माली हैं। वसुंधरा का जन्म एक मराठा के रूप में हुआ था, जिनकी शादी जाटों के एक शाही परिवार में हुई थी और उनकी बहू गुज्जर समुदाय से हैं। हालांकि, राजस्थान में वसुंधरा सहित प्रत्येक राजा को “राजपूत” माना जाता है।
आजादी के बाद से राज्य के 14 मुख्यमंत्रियों में से पांच ब्राह्मण, दो वैश्य (सुखाड़िया और देवपुरा), एक कायस्थ (शिव चरण माथुर), एक मुस्लिम (बरकतुल्ला खान), और एक राजपूत (शेखावत) रहे हैं। राज्य ने नाथूराम मिर्धा, रामनिवास मिर्धा और परसराम मदेरणा जैसे प्रमुख जाट नेताओं को देखा है, लेकिन कोई भी जाट कभी सीएम नहीं रहा।
1980-81 में एक वर्ष से कुछ अधिक समय तक मुख्यमंत्री रहे जगन्नाथ पहाड़िया अनुसूचित जाति से थे। इंदिरा ने उन्हें उस समय आगे बढ़ाते हुए सीएम बनाया था, जब जगजीवन राम ने कांग्रेस छोड़ दी थी और वह एक एससी नेता की तलाश में थीं जिसे राष्ट्रीय स्तर पर पेश किया जा सके। पहाड़िया ने महादेवी वर्मा की कविता पर एक टिप्पणी की थी, जिससे इंदिरा नाराज हो गईं और उन्हें अपना पद खोना पड़ा।
2011 की जनगणना के अनुसार, राजस्थान की 17% से अधिक आबादी अनुसूचित जाति की है। 13% से ज्यादा एसटी हैं, लेकिन अभी तक कोई एसटी राजस्थान का सीएम (List of CM) नहीं बना है।