नई दिल्ली, 20 अप्रैल। Skill vs Marks : आजकल के युवा अपनी मेहनत और अच्छे अंकों से कॉलेज की दुनिया में टॉप करते हैं, लेकिन असली दुनिया का सामना करते वक्त कई बार यह सब कुछ बेकार लगने लगता है। बिस्मा की कहानी इस हकीकत को उजागर करती है कि केवल टॉप मार्क्स और डिग्रियां ही किसी को जॉब पाने की गारंटी नहीं देतीं। उनकी यह अनुभवों से भरी कहानी, जो उन्होंने अपने लिंक्डइन पोस्ट में साझा की, ने देशभर में एक नई बहस छेड़ दी है – ‘स्किल बनाम मार्क्स’।
बिस्मा की यात्रा
बिस्मा, जो दिल्ली यूनिवर्सिटी में अपनी पढ़ाई के दौरान कई ट्रॉफियों और 50 से ज्यादा सर्टिफिकेट्स के साथ टॉप कर चुकी थीं। जब जॉब मार्केट में उतरीं, तो उन्हें एक सख्त सच्चाई का सामना करना पड़ा। लिंक्डइन पर अपनी पोस्ट में उन्होंने लिखा, “मेरे पास अच्छे अंकों के साथ-साथ कई सर्टिफिकेट्स हैं, लेकिन जब इंटर्नशिप के लिए आवेदन किया, तो दरवाजे बंद ही मिले।” यह पोस्ट जल्दी ही वायरल हो गई और अब यह सवाल उठ रहा है कि क्या डिग्रियां और मार्क्स वाकई जॉब के लिए पर्याप्त हैं या फिर ‘स्किल्स’ और ‘प्रैक्टिकल एक्सपीरियंस’ की अहमियत बढ़ गई है।
स्किल्स की ताकत
बिस्मा की तरह लाखों स्टूडेंट्स को यह अहसास होता है कि कॉलेज की दुनिया में जो टॉप किया, वह असली दुनिया में उन्हें उतना फायदा नहीं दे रहा। अब जॉब मार्केट में सिर्फ पढ़ाई और डिग्री से ज्यादा, वास्तविक कौशल और अनुभव की मांग हो रही है। एक अच्छे जॉब पाने के लिए न केवल डिग्री की जरूरत है, बल्कि उसमें निरंतर सीखने की क्षमता, नये कौशल सीखने की इच्छाशक्ति और इंटर्नशिप जैसे प्रैक्टिकल एक्सपीरियंस की अहमियत भी बढ़ गई है।
कंपनियां और नौकरी के क्षेत्र की बदलती दृष्टि
आजकल की कंपनियां तकनीकी कौशल, टीमवर्क, क्रिएटिविटी, और प्रॉब्लम सॉल्विंग जैसी क्षमताओं को अधिक महत्व दे रही हैं। इसलिए, सिर्फ डिग्री और मार्क्स के बल पर उम्मीद करना शायद अब उतना प्रभावी न हो जितना पहले था। यह दौर अब ‘स्किल्स’ का है। बिस्मा का अनुभव इस बदलाव की साक्षात मिसाल है।
स्किल्स बनाम डिग्री: एक नई बहस
बिस्मा की पोस्ट के बाद अब देशभर में यह सवाल उठने लगा है कि क्या वाकई आज के जॉब मार्केट में सिर्फ टॉप मार्क्स और डिग्री का महत्व रह गया है, या फिर वक्त आ गया है जब जॉब्स के लिए काम आने वाली असली चीजें, जैसे स्किल्स और अनुभव, ज्यादा महत्वपूर्ण हो गई हैं।
अंततः, बिस्मा की कहानी हमें यह सिखाती है कि कॉलेज की डिग्रियां और अच्छे मार्क्स महत्वपूर्ण हैं, लेकिन एक नौकरी हासिल करने के लिए असली चुनौती कौशल (skills) और प्रैक्टिकल अनुभव (practical experience) की होती है। यह बदलाव न केवल युवाओं के लिए, बल्कि शैक्षिक संस्थानों और कंपनियों के लिए भी सोचने का एक मौका है।
बिस्मा का अनुभव यह साबित करता है कि हमें शिक्षा प्रणाली को सिर्फ किताबों तक सीमित नहीं रखना चाहिए। हमें इसे ऐसे स्किल्स और प्रैक्टिकल ट्रेनिंग से जोड़ने की जरूरत है जो छात्रों को न सिर्फ एक डिग्री, बल्कि असली दुनिया में सफल होने के लिए तैयार करें। एक सही दिशा में काम करने से हम सभी के लिए बेहतर भविष्य बना सकते हैं, जो डिग्रियों से ज्यादा वास्तविक दुनिया में काम आने वाले स्किल्स पर आधारित हो।
